अर्हम्

अर्हम्

अर्हम्

जो शांति सुधा बरसा गए रे, (मुनि) शांति प्रिय सुखकार।
जन-जन का मन हरसा गए रे, (मुनि) शांति प्रिय सुखकार।।
तज मोह और मद माया, माटी की समझ कर काया।
तन-मन समता सरसा गए रे, (मुनि) शांति प्रिय सुखकार।।
लेकर अंतिम वय दीक्षा, कर ली थी स्वयं समीक्षा।
अनशन में पूर्ण तितिक्षा रे, (मुनि) शांति प्रिय सुखकार।।
ना चाह थी जीना-मरना, बस भव सागर अब तरना।
तप संयम से नहीं डरना रे, (मुनि) शांति प्रिय सुखकार।।
दो पाँच मिले सुखकारा, पचपन दिन का संथारा।
हिम्मत से पार उतारा रे, (मुनि) शांति प्रिय सुखकार।।
मुनि शांति प्रिय का अनशन,देता अनुपम उद्बोधन।
भरता मन में नव पुलकन रे, (मुनि) शांति प्रिय सुखकार।।
जय महाश्रमण गुरुवर का, सान्निध्य मिला पारस का।
श्री सिद्धप्रज्ञ मुनिवर का रे, (मुनि) शांति प्रिय सुखकार।।
चैतन्य ‘अमन’ गुण गाएँ, श्रद्धा से शीष झुकाएँ।
प्रबोध शोध कर पाए रे, (मुनि) शांति प्रिय सुखकार।।

(लय: कैसी वह कोमल----)