मुनिश्री शांतिप्रियजी की स्मृति सभा का आयोजन

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मुनिश्री शांतिप्रियजी की स्मृति सभा का आयोजन

कृष्णानगर, दिल्ली
उग्रविहारी तपोमूर्ति मुनिश्री कमलकुमारजी के सान्निध्य में मुनिश्री शांतिप्रियजी की स्मृति सभा का आयोजन किया गया। मुनिश्री ने उद्गार व्यक्त करते हुए फरमाया कि मुनि शांतिप्रियजी ने गृहस्थावास में रहते हुए भी अच्छी साधना और संघ प्रभावना में अपनी शक्ति का नियोजन किया था। उनकी जन्मभूमि देवरिया और कर्म भूमि डीसा थी। मेरा दोनों जगह जाना हुआ और उनके कार्यों की सुवास का अनुभव किया। उन्होंने उपासक बनकर लंबे समय तक अपने समय को सार्थक किया और अपने सुपुत्र को भी उपासक बनाया।
आसींद मर्यादा महोत्सव पर रात्रि में मेरी सेवा कर रहे थे, उस समय मैंने उनसे पच्चीस बोल प्रतिक्रमण सुना, कुछ गीत सुने, मुझे बहुत अच्छा लगा। मैंने उनसे पूछा कि दीक्षा की भावना है क्या? उन्होंने कहा आप दलाली करें, मैं तैयार हूं। मैं उन्हें युवाचार्य प्रवर के दर्शन करवाकर दीक्षा की दलाली करने लगा। तब युवाचार्य प्रवर ने फरमाया कि प्रतिक्रमण कंठस्थ कर लोगो क्या? पैदल विहार कर सकते हो क्या? कितने चल सकते हो? सारी बातों का सटीक उत्तर सुनकर युवाचार्यप्रवर आचार्यश्री के चरणों में पधारे और सारी बात निवेदन की। आचार्यप्रवर ने प्रतिक्रमण का आदेश प्रदान किया। जयपुर चातुर्मास में दीक्षा हो गई। दीक्षा के पश्चात् उनका विहरण मेवाड़ में ही होता रहा। मेरा उधर जाना नहीं हुआ परंतु प्रसन्नता है कि उन्होंने अंत मैं संथारा करके अपना काम सिद्ध किया अंत में उनको मुनि पारस कुमारजी और मुनि सिद्धप्रज्ञजी का शुभ संयोग प्राप्त हुआ। उनकी आत्मा उत्तरोत्तर विकास करती हुई चरम लक्ष्य को प्राप्त करे इसी भावना के साथ। अंत में चार लोगस्स का पूरी परिषद् में ध्यान करवाया।