आत्मा को पापों से बचाने का प्रयास करें : आचार्यश्री महाश्रमण
16 अगस्त 2023 नन्दनवन-मुम्बई
हमारी आत्मा को उज्ज्वलता की दिशा में ले जाने वाले आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगलदेशना प्रदान कराते हुए फरमाया कि परम वन्दनीय भगवान महावीर के सान्निध्य में अनेक लोगों के साथ राजा उदयन रानी मृृगावती देवी और श्रमणोपासिका जयंती उपस्थित हुए। भगवान ने देशना दी। श्राविका जयंती ने भगवान के पास आकर वन्दना की और प्रश्न किया कि भन्ते! जीव भारीपन को कैसे प्राप्त होते हैं। जीव पाप कर्म से भारी किस कारण से बनता है। प्रभु महावीर ने उत्तर में अठारह चीजें बतायी जिनसे जीव गुरुत्व को प्राप्त होता है। यह अठारह चीजें अठारह पाप हैं। आत्मा पापों से भारी है, तो अधोगति में जाने वाली बन सकती है। भारी है, वह नीचे जाती है। हल्की है, वह नीचे नहीं जाती।
हिंसा आदि पापों से आत्मा भारी बनती है। इनका विरमण कर लिया जाए तो आत्मा हल्की बन सकती है। इन अठारह पाप की प्रवृत्तियों को त्याग देने से संयम हो जाता है। साधु के तो सर्व सावद्य योग के त्याग जीवनभर के लिए होते हैं। श्रमणोपासक गृहस्थ भी सामायिक करते हैं, तो एक सीमा तक पाप विरत हो जाते हैं। बारह व्रत और सुमंगल साधना जीवनभर के लिए ले ली तो आंशिक रूप में पापों से विरत हो जाते हैं। श्रमणोपासिका जयंति द्वारा पूछे गये प्रश्न आगम में आ गये तो कितनी महत्वपूर्ण बात है। भगवान ने उनके उत्तर भी दिये हैं। गृहस्थ गार्हस्थ में रहते हुए सारे पाप से तो नहीं बच सकता है, पर उनकी कुछ सीमा हो जाये तो उसकी आत्मा हल्केपन को प्राप्त हो सकती है।
कई श्रमणोपासक तो एका- भवावतारी हुए हैं। श्रमणोपासक भी कितना विकास कर सकता है। मरुदेवा माता ने तो एक भव मनुष्य का किया और मोक्ष में चली गयी। उससे पहले तो उनका जीव वनस्पति काय में ही रहा था। उन्होंने देवगति, नरकगति और तिर्यन्च गति (वनस्पति सिवाय) का स्पर्श नहीं किया था। हम आत्मा को पापों से बचाने का प्रयास करें। कालूयशोविलास का विवेचन कराते हुए पूज्यवर ने परम पूज्य कालूगणी की कष्ट सहिष्णुता का उल्लेख कराते हुए भीलवाड़ा से गंगापुर पधारने के प्रसंग को फरमाया।
पूज्यवर ने सुश्री मुस्कान धाकड़ को 34 की तपस्या, मनीषा चिंडालिया कोे 31 की तपस्या एवं लता देवी कटारिया को सिद्धि तप की तपस्या के प्रत्याख्यान करवाये। अन्य तपस्वियों को भी उनकी तपस्या के प्रत्याख्यान करवाये गये। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।