अच्छे धार्मिक संस्कारों को आत्मसात करने का हो प्रयास: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

अच्छे धार्मिक संस्कारों को आत्मसात करने का हो प्रयास: आचार्यश्री महाश्रमण

महासभा द्वारा  ‘बेटी तेरापंथ की’  के प्रथम सम्मेलन का आयोजन

19 अगस्त 2023, नन्दनवन-मुम्बई
तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने भगवती सूत्र की आगम वाणी को समझाते हुए फरमाया कि श्रमण भगवान महावीर के सान्निध्य में श्रमणोपासिका जयंती स्थित है। पांच इन्द्रियों के विजय में भी जयन्ती ने प्रश्न किये हैं। बोली- भन्ते! श्रोतेन्द्रिय के वशीभूत जीव क्या बन्धन करता है। भगवान ने उत्तर किया कि जयंती! श्रोतेन्द्रिय के प्रति वशीभूत बना जीव आयुष्य कर्म को छोड़कर शेष सात कर्मों की शिथिल प्रवृत्तियों को गाढ़ बंधन प्रवृत्ति में कर लेता है। इस तरह जीव चारों गतियों में संसार परिभ्रमण करता है। इसी तरह से वह जीव अन्य इन्द्रियों से वशीभूत हो कर्मों का गाढ़ बन्धन करता है। भाव इन्द्रियां तो क्षयोपशम भाव है। जीवन की एक उपलब्धि है। परन्तु इन्द्रियों का उपयोग आदमी करता है, राग-द्वेष के वशीभूत हो जाता है, वह प्रवृृत्ति पाप कर्म का बन्धन कराने वाली बन सकती है।  
यह पांचों इन्द्रियां ज्ञान की साधन है, पर भोग की साधन भी है, पाप कर्म का बन्धन कराने में यह कारण बन सकती है। कान का होना बड़ी है, तो कान सुनने में सक्षम है, तो विशेष बात हो जाती है। तो इन्द्रियों का बढ़िया उपयोग करें। अच्छा सुनें, अच्छा देखें और अच्छा बोलें। आंखें अहिंसा की साधना में उपयोगी है। खाने का संयम हो। स्वाद में आसक्ति न हो। फालतू विवाद भी वाणी से न करें। संवाद करें। 
कालूयशोविलास का सुमधुर विवेचन कराते हुए पूज्यवर ने पूज्य कालूगणी के स्वास्थ्य की प्रतिकूलता के समय की गई व्यवस्थाओं को विस्तार से व्याख्यायित किया। 
पूज्यवर ने खुशबू चिंडालिया एवं टीना बैंगानी ने 50 की तपस्या एवं सज्जन रांका ने 93वीं अठाई की तपस्या के प्रत्याख्यान किये। पूज्यवर द्वारा अन्य तपस्याओं के प्रत्याख्यान भी करवाये गये।
परमपूज्य की सन्निधि में एवं जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के तत्वावधान में ‘बेटी तेरापंथ की’ का प्रथम सम्मेलन शुरू हुआ। महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने ‘बेटी तेरापंथ की’ के संभागियों को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि चौरासी लाख जीव योनियों में मनुष्य जीवन महत्वपूर्ण होता है। अच्छा कुल और अच्छे संस्कार वाले कुल में जन्म लेना और विशेष होता है। आदमी का जीवन शांतिमय, धर्ममय हो। धार्मिक सम्प्रदायों द्वारा अच्छे धार्मिक संस्कार दिये जाते हैं। संस्कार मजबूती के साथ हो तो जीवनभर काम आ सकते हैं। आदमी कहीं भी जाए, अपने संस्कारों की सुवास फैला सकता है। 
 महासभा द्वारा आयोजित यह सम्मेलन संस्कार और शिक्षा को पुष्ट बनाने वाला है। यह जीवन की महत्त्वपूर्ण निधि हो सकती है। अच्छी बातें कहीं से सुनी जा सकती है। पुरानी स्मृतियों को ताजा करने के साथ-साथ अच्छे धार्मिक संस्कार, अहिंसा, संयम, शांति, समन्वय आदि रहे तो जीवन अपने सुखी रह सकता है। परिवार और बच्चों में अच्छे संस्कार देने का प्रयास होना चाहिए। बेटियों का तो मां-बाप के पास आना ही विशेष बात होती है तो बेटियां और अन्य भी इससे अच्छी प्रेरणा, अच्छे धार्मिक संस्कार आदि को आत्मसात करने का प्रयास करें। धर्म का जीवन में विकास हो। संप्रदाय अलग बात है। सब में अहिंसा-संयम के संस्कार रहे। त्याग- तपस्या जीवन में रहे। 
इस सम्मेलन के संदर्भ में ‘बेटी तेरापंथ की’ की संयोजिका श्रीमती कुमुद कच्छारा ने अपनी अभिव्यक्ति दी। सहसंयोजिका श्रीमती वन्दना बरड़िया से बेटियों से परिसंवाद किया तो बेटियों के भावपूर्ण संवाद से पूरे माहौल को स्नेहिल बना दिया। महासभा के अध्यक्ष श्री मनसुखलाल सेठिया ने भी इस संदर्भ में अपनी अभिव्यक्ति दी। मुम्बई से संबंधित बेटियों ने गीत का संगान किया। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।