तेरांपथ प्रोफेशनल फोरम बुद्धिमानों का संगठन: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

तेरांपथ प्रोफेशनल फोरम बुद्धिमानों का संगठन: आचार्यश्री महाश्रमण

अपने संदेशों से राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण कर रहे हैं आचार्यश्री महाश्रमण - रमेश बैस, राज्यपाल, महाराष्ट्र

नन्दनवन, मुम्बई 26 अगस्त 2023
परम पूज्य आचार्यश्री महाश्रमणजी के पावन सान्निध्य में तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम के 16वें राष्ट्रीय अधिवेशन के द्वितीय दिवस पर मंचीय उपक्रम आयोजित हुआ। परमपूज्य आचार्यप्रवर ने अधिवेशन में उपस्थित सम्भागियों को आशीर्वचन देते हुए फरमाया कि तेरांपथ प्रोफेशनल फोरम बुद्धिमानों का संगठन है। बुद्धिमान आदमी बहुत बढ़िया कार्य कर समस्या को सुलझा सकता है तो कहीं बुद्धि का ठीक उपयोग नहीं करने से समस्या पैदा करने का प्रयास हो सकता है। आदमी लघुता का प्रयोग करें। घमंड से बचने वाला उत्थान कर सकता है। हल्की चीज ऊपर उठती है। हम अपने जीवन में दुर्गुणों से हल्के बनें। लघुता दुर्गुणों में आए। वार्षिक सम्मेलन में सभी का मिलना धार्मिकता के साथ बढ़ता रहे। धर्म की छोटी-छोटी जानकारी के साथ करणीय कार्य को आचरण में लाएं तो धार्मिकता भी अच्छी हो जाती है।
महातपस्वी युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मुख्य प्रवचन में मंगल देशना प्रदान कराते हुए फरमाया कि भगवती सूत्र में प्रश्न किया गया है- भन्ते! यह लोक क्या है? उत्तर दिया कि लोक और अलोक दो है। स्थूल दूनिया तो लोक ही है। अनन्त आकाश मंे छोटा-सा स्थान लोक का है। पांच अस्तिकाय हैं, बस यही लोक है। धर्मास्तिकाय, अधर्मा- स्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय और पुद्गलास्तिकाय, ये जहां है, वही लोक है। प्रथम चारों अमूर्त है, सिर्फ पुद्गला- स्तिकाय मूर्त है। अलोक में तो केवल आकाश तत्व है। जैन दर्शन का एक वाद है- पंचास्तिकाय। सृष्टि में दो ही तत्त्व हैं- जीव और अजीव। 
जैन दर्शन में नव तत्व और पांच अस्तिकाय बताये गये हैं। अनेक संदर्भों से अलग-अलग बातें बतायी जा सकती हैं। बढ़िया उत्तरदाता वह है जो प्रश्नकर्ता का अन्तर छू ले। जहां आत्मा के कल्याण की बातें है, वहां नव तत्वों को समझना आवश्यक है। ये अध्यात्म धर्म से जुड़े हैं। पूज्यवर ने कालूयशोविलास के क्रम में पूज्य कालूगणी द्वारा सन्तों को शिक्षा-प्रेरणा देने के प्रसंग को फरमाया।
साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने मंगल पाथेय में ‘लघुता से प्रभुता’ विषय व्याख्या करते हुए जीवन नदी के दो छोर बताये - एक पहलु है लघुता और दूसरा है प्रभुता। आध्यात्मिक जगत में प्रभुता का अर्थ है कि हमें संपन्न बनना है, ऐश्वर्य संपन्न बनना है, लेकिन ऐश्वर्य कौनसा होगा? रूपये-पैसे का नहीं, प्रोपर्टी का नहीं, हमारा आध्यात्मिक ऐश्वर्य है हम अपनी आत्मा की ओर चले जाते हैं। जिन व्यक्तियों का दृष्टिकोण आध्यात्मिक बन जाता है, अन्तर्मुखी बन जाते हैं, वह वास्तव में आध्यात्मिक समृद्धि को प्राप्त कर लेते हैं। हल्का बनना चाहते हो तो अपनी इच्छाओं को अल्प करना होगा। जितनी व्यक्ति की इच्छाएं अल्प होंगी, वह उतना ही आगे बढ़ सकता है।
राष्ट्रीय अधिवेशन में महाराष्ट्र शासन के महामहिम राज्यपाल श्री रमेश बैस के आगमन पर उन्हें पुलिसकर्मियों द्वारा ‘गार्ड ऑफ ऑनर’ दिया गया। साथ ही राष्ट्र गान और महाराष्ट्र गान का संगान किया गया। 
मंचीय कार्यक्रम में टीपीएफ राष्ट्रीय अध्यक्ष पंकज ओस्तवाल ने अपने विचार रखते हुए कहा कि व्यक्ति, समाज, राष्ट्र तभी लघुत्व से प्रभुत्व प्राप्त कर सकता है, जब उसके जीवन में आध्यात्मिक वरदहस्त हो। एक अल्प गुणी भी गुरु प्रसाद से ऊँचाई को छू सकता है, इसका साक्षात् उदाहरण मैं स्वयं हूं।
महामहिम राज्यपाल ने अपने वक्तव्य में कहा कि चातुर्मास श्रवण, मनन, इतिहास, आत्म साक्षात्कार को जानने का अवसर है। आचार्यश्री एक संगठन के आचार्य होने के बावजूद धर्म निरपेक्ष विचारों के धनी हैं, जो जनमानस को जागृत कर रहे हैं। आप नशामुक्ति, नैतिकता और सद्भावना का संदेश देते हुए एक राष्ट्रीय चरित्र निर्माण का कार्य कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि भारत सभ्यता, समृद्धि और संस्कृति से भरा राष्ट्र है और महाराष्ट्र तो संतों की भूमि है। आत्मज्ञान की परंपरा में भगवान महावीर के सिद्धांतों का प्रमुख स्थान है, जो अध्यात्म उत्थान कर रहा है। आचार्य तुलसी ने इसी राह पर अणुव्रत के ध्वज तले अपनी आवाज समाज हेतु बुलंद की। 
राज्यपाल महोदय ने कविता के माध्यम से सबका मनोबल बढ़ाया एवं आत्म-विकास हेतु संकल्पों की क्षमता पर विशेष जोर देते हुए कहा कि प्रोफेशनल के पास बाल-अबाल, गरीब, गांव, आदिवासी आदि को सबल बनाने हेतु विशेष क्षमता है। अपने भीतर जगी करूणा से आप लघुता से प्रभुता पा सकते हैं। टीपीएफ अपने आप में अच्छा संगठन है जो शिक्षा, चिकित्सा और आध्यात्मिक क्षेत्र में कार्यरत है। मंचीय कार्यक्रम राष्ट्रगान के साथ संपन्न हुआ। 
पूज्यवर ने उत्तम पितलिया को सिद्धि तप, खुशबू चिंडालिया को 57 की तपस्या, करण कोठारी कोे 30 की तपस्या, शीतल मेहता को 29 की तपस्या, मधु कोठारी को 29 की तपस्या, पुष्पा मेहता को वर्षीतप में अठाई के प्रत्याख्यान करवाये एवं अन्य तपस्वियों को भी उनकी तपस्या के प्रत्याख्यान करवाये गये।  डॉ0 विजयलक्ष्मी मणोत की कृति ‘सृजन सुख’ परम पूज्य की सन्निधि में लोकार्पित की गई। पूज्यवर ने आशीर्वचन फरमाया। पूज्यवर ने उपस्थित लोगों को प्रेक्षाध्यान का प्रयोग भी करवाया।  आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास व्यवस्था समिति अध्यक्ष मदनलाल तातेड़ ने अपने उद्गार प्रस्तुत किये। महामहिल राज्यपाल श्री रमेश बैंस का सम्मान तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम और आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास व्यवस्था समिति मुंबई द्वारा सम्मान किया गया।  कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।