अच्छा कर्म करने का करें प्रयास: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

अच्छा कर्म करने का करें प्रयास: आचार्यश्री महाश्रमण

22 अगस्त 2023 नन्दनवन-मुम्बई
युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अमृत देशना प्रदान कराते हुए फरमाया कि हमारी दुनिया में भिन्नता देखने को मिलती है। विभक्ति भाव देखने को मिलता है। एक ही जीव भिन्न-भिन्न अवस्थाओं को प्राप्त कर उनमें परिणत हो जाता है। कभी वह नरक, कभी तिर्यन्च तो कभी मनुष्य रूप मंे जन्म लेता है तो कभी देवगति को प्राप्त हो जाता है। यह विभिन्नता-विभक्तिभाव कर्म से होता है, अकर्म से नहीं होता। संसार में मनुष्य गति में सबसे कम जीव है और तिर्यन्च गति में सबसे ज्यादा जीव हैं। दो राशियां बताई गई हैं- व्यवहार राशि और अव्यवहार राशि। व्यवहार राशि में तो भिन्नता हो सकती है पर अव्यवहार राशि में यह भिन्नता नहीं है। अनादिकाल से वे जीव अव्यवहार राशि वनस्पतिकाय में है। आज तक वे इस गति के सिवाय किसी अन्य गति में पैदा ही हुए नहीं है। उसी गति मे जन्म-मरण अनादिकाल से कर रहे हैं।
व्यवहार राशि के जीव जितने हैं, उतने ही रहते हैं। जितने जीव मोक्ष में चले जाते हैं, उतने जीव अव्यवहार राशि से व्यवहार राशि में आ जाते हैं। जीवों का अक्षय कोष अव्यवहार राशि का है, वो कभी खाली होने वाला नहीं है। मनुष्य जगत में भी कितनी भिन्नता है। धरती की भी कितनी भिन्नता है। भाषा की भिन्नता है। भिन्नता का मुख्य आधार कर्म है, चाहे जीव है या जीव समूह, यह जगत है।
जैन दर्शन ईश्वर कृत भिन्नता को नहीं मानता। बौद्धिकता और अबौद्धिकता का भी मनुष्यों में विभाग है। यह भिन्नताएं कर्म के कारण ही होती हैं, अकर्म से नहीं। आदमी इस सिद्धांत को समझकर अच्छा कर्म करने का प्रयास करंे। आदमी अनुकूल-प्रतिकूल स्थितियों में भी समताभाव रखने का प्रयास करे और अपने पूर्वकृत कर्मों को धर्म-साधना, स्वाध्याय, जप, तप के द्वारा काटकर हल्का बनने का प्रयास करे। हम इस सिद्धान्त को समझकर यह सोचें कि मुझे जो सुख-दुःख मिल रहा है, वह मुख्यतया मेरे कर्म से है। मैं दूसरों पर इसका श्रेय क्यों दूं? आरोपण क्यांे करूं? निमित्त हो सकता है। यह समझें कि मेरा कर्मों का कर्जा चुकता हो रहा है आगे खराब कर्म मत करो। उससे बचने का प्रयास हो। आदमी को बुरी प्रवृत्तियों को छोड़ने और अपने कर्म को अच्छा बनाने का प्रयास करना चाहिए।
कालूयशोविलास की सुविवेचना करते हुए पूज्यवर ने पूज्य कालूगणी द्वारा मुनि तुलसी को युवाचार्य पद पर स्थापित करने के चिन्तन के प्रसंग को समझाया। पूज्यवर ने तपस्या के प्रत्याख्यान करवाये। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।