देवों के पांच प्रकार प्रज्ञप्त: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

देवों के पांच प्रकार प्रज्ञप्त: आचार्यश्री महाश्रमण

नन्दनवन-मुम्बई 23 अगस्त 2023
आगम वेत्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन प्रेरणा प्रदान कराते हुए फरमाया कि भगवती सूत्र के बारहवें सूत्र के नौवें उद्देशक में प्रश्न किया गया कि भन्ते! देव कितने प्रकार के होते हैं? उतर दिया गया कि हमारी सृष्टि में विभिन्न प्राणी रहते हैं। नरक, तिर्यन्च, मनुष्य और देवता भी हैं। यहां सिर्फ देवलोक वाले देव ही नहीं बताये गये हैं और भी देव बताये गये हैं।
जिनकी आराधना पूजा की जाती है, वो देव होते हैं। यहां देव के पांच प्रकार प्रज्ञप्त है। भव्य-द्रव्य देव, नर देव, धर्म देव, देवाधि देव और भाव देव। वह प्राणी जो अगले जन्म में देवगति में पैदा होने वाला होता है, वह भव्य-द्रव्य देव है। अनेक मनुष्य और पंचेन्द्रिय तिर्यन्च योनि वाले जीव जो अगली गति में देव बनने वाले हैं, वे भव्य-द्रव्य देव कहलाते हैं। मनुष्यों में जो नरेन्द्र होते हैं, चक्रवर्ती होते हैं, वे नर देव कहलाते हैं। भौतिक जगत में मनुष्यांे में चक्रवर्ती से बड़ा कोई नहीं होता है। बत्तीस-श्रेष्ठ राजा उनका अनुसरण करते हैं। दो चक्रवर्ती या दो तीर्थंकर कभी आपस में नहीं मिलते हैं। जो धर्म की दृष्टि से पूजनीय है, अणगार साधु हैं, ये धर्म देव कहलाते हैं। इनमें सम्यक् ज्ञान, दर्शन और चारित्र होता है।
जो अर्हत् भगवान हैं, अतीत, वर्तमान, भविष्य के ज्ञाता हैं, ये तीर्थंकर देवाधिदेव कहलाते हैं। वर्तमान में जो भवनपति, व्यंतर, ज्योतिष्क और वैमानिक, जो चार प्रकार की गति के देव हैं, वे भाव देव होते हैं। इस प्रकार देव के इस विभाग में मनुष्य, तिर्यंच, देव सभी समाहित हो जाते हैं। कुछ ऐसे भी मनुष्य होते हैं, जो एक जन्म में चक्रवर्ती और तीर्थंकर बन जाते हैं। भाव देवों की पूजा लौकिक पूजा कहलाती है। मनुष्य उनसे सहयोग भी मांगते हैं। पूज्यवर ने कालूयशोविलास का विवेचन कराते हुए मुनि तुलसी को पूज्य कालूगणी द्वारा दी गई प्रेरणाओं के प्रसंगों को व्याख्यायित किया।
जैन विश्व भारती द्वारा ‘उत्तर- झयणाणि’ आगम पर आधारित ‘आगम मंथन प्रतियोगिता’ के बैनर का अनावरण पूज्यवर की सन्निधि में किया गया। पूज्यवर ने आशीर्वचन के रूप में फरमाया कि आगम मंथन प्रतियोगिता ज्ञान बढ़ाने का माध्यम है। आध्यात्मिक-धार्मिक विकास होता रहे। गौतम डागा ने इस प्रतियोगिता के संदर्भ में जानकारी प्रदान की। तुलसी जैन ‘तुषरा’ ने अपनी पुस्तक ‘अनन्य प्रयोग प्रेरक लघु कथाएं’ गुरु चरणों में लोकार्पित की। इस संदर्भ में सुनीता जैन ने अपनी अभिव्यक्ति दी। पूज्यवर ने पावन आशीर्वाद प्रदान किया। पूज्यवर ने तपस्या के प्रत्याख्यान करवाये। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।