ज्ञान है आत्मा का एक पर्याय, एक गुण: आचार्यश्री महाश्रमण
नन्दनवन-मुम्बई 25 अगस्त 2023
तीर्थंकर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आगम वाणी का रसास्वादन कराते हुए फरमाया कि भगवती सूत्र में बताया गया है कि ज्ञान आत्मा का एक पर्याय है, गुण है। द्रव्य आत्मा मंे अनेक भाव आत्माएं भी होती हैं। तीन आत्माएं हर जीव में उपलब्ध होती हैं। जैसे द्रव्य आत्मा, दर्शन आत्मा और उपयोग आत्मा। शेष किसी में है, किसी में नहीं भी। ये तीन आत्माएं हमेशा सहचर हैं, सर्वत्र है। ये तीन आत्माऐं जीव से छूटती नहीं हैं।
यहां प्रश्न किया गया है कि सबसे कम कौनसी आत्मा है? उत्तर दिया गया कि सर्वविरति चारित्र आत्मा वाले जीव सबसे कम होते हैं। उनकी अपेक्षा ज्ञान आत्मा वाले अनन्त गुणा है। उसकी अपेक्षा कषाय आत्मा वाले जीव उनसे भी अनन्त गुणा हैं। फिर योग आत्मा वाले जीव उनसे भी विशेषाधिक हैं। वीर्य आत्मा वाले जीव उनसे भी विशेषाधिक हैं। द्रव्य, दर्शन और उपयोग ये तीनों समान रूप मंे उनसे भी विशेषाधिक हैं।
आत्मा ज्ञान है या आत्मा से भिन्न कोई ज्ञान नाम का तत्त्व है। ज्ञान नियमतः आत्मा ही है। आत्मा होगी तो ज्ञान होगा। ज्ञान और दर्शन ये आत्मा के गुण है। भाषा का ज्ञान भी होता है और विषय का ज्ञान भी होता है। भाषा तो ज्ञान अर्जन करने का माध्यम है। मूल तो विषय ही है। भाषाएं अनेक है। ज्ञान-ज्ञान मंे भी अन्तर है। लौकिक ज्ञान अलग है तो आध्यात्मिक ज्ञान अलग है।
अपने-अपने क्षेत्र के अनुसार ज्ञान अर्जित करना अपेक्षित होता है। ज्ञान के भंडार ग्रन्थों का अपना विशेष महत्व होता है। ग्रन्थों की अवज्ञा न हो। हम धर्म- अध्यात्म-विद्या का ज्ञान अर्जित करने का प्रयास करें। हम जैन धर्म से जुड़ें हैं तो जैन धर्म के सिद्धान्तों को समझें। ज्ञान से हमारे में वैराग्य के भाव बढ़े। आत्म कल्याण की प्रेरणा मिले। ज्ञान है, वह आत्मा ही है। ग्रन्थ तो ज्ञान के माध्यम होते हैं। आदमी को निरंतर ज्ञान का विकास करने का प्रयास करना चाहिए।
कालूयशोविलास की विवेचना करते हुए पूज्यवर ने पूज्य कालूगणी द्वारा दी गई शिक्षाओं के प्रसंग का वर्णन किया।
जगदीश मादरेचा ने 34 की तपस्या एवं अन्य तपस्वियों ने अपनी तपस्या के प्रत्याख्यान पूज्यवर से ग्रहण किये।
तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम का कार्यक्रम टी0पी0एफ0 गौरव अलंकरण समारोह पूज्यवर की सन्निधि में आयोजित हुआ। टी0पी0एफ0 के महामंत्री विमल शाह ने वर्ष 2023 का टी0पी0एफ0 गौरव अलंकरण जयचंदलाल मालू को प्रदान करने की घोषणा की। टी0पी0एफ0 के मुख्य न्यासी चन्द्रेश जैन ने उनका परिचय प्रस्तुत किया।
टी0पी0एफ0 के पदाधिकारियों द्वारा जयचंदलाल मालू को स्मृति चिन्ह प्रदान कर सम्मानित किया गया। सम्मान प्राप्त करने के उपरान्त जयचंदलाल मालू ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। पूज्यवर ने आशीर्वाद प्रदान करते हुए फरमाया कि आदमी के जीवन में गुणरूप विशेषताएं होती हैं, तो जीवन सुशोभित हो जाता है। अपने जीवन में सम्यक् ज्ञान, दर्शन और चारित्र की आराधना का प्रयास होना चाहिए।
कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।