विघ्न विनाशक और मंगलकारी है भक्तामर
औरंगाबाद
मुनि अर्हत्कुमारजी के सान्निध्य में तेरापंथी सभा द्वारा स्वास्तिक आकार में भक्तामर का अनुष्ठान औरंगाबाद में पहली बार हुआ। इस अवसर पर उद्बोधन प्रदान करते हुए मुनि भरतकुमारजी ने कहा कि भारतीय परंपरा में मंत्र स्त्रोत आदि का बहुत बड़ा महत्व है। जैन धर्म में अनेक मंत्र स्त्रोत है, जो स्वयं में सिद्ध एवं चमत्कारी है। भक्तामर स्त्रोत एक ऐसा विशिष्ट स्त्रोत है, जो आधि, व्याधि एवं उपाधि का नाश कर व्यक्ति के जीवन में समाधि को प्रकट करता है। भक्तामर का अर्थ है- भक्त-अमर, जो भक्तों को अमर बना दे, उसे शाश्वत सुख प्रदान करे, वही भक्तामर है।
यह विघ्नविनाशक, मंगलदायक, शांतिप्रदायक है। इसकी विधिवत साधना करने से व्यक्ति को इच्छित फल की प्राप्ति होती है एवं सिद्धि का द्वार खुलता है। आचार्यश्री मानतुंग की आदिनाथ भगवान पर आधारित यह श्रद्धासिक्त स्तुति जीवन में इंद्रधनुषी रंग भरती है। मुनिश्री ने हर व्यक्ति को नियमित इसकी स्तुति करने की प्रेरणा दी। मुनि भरतकुमारजी ने विविध मंत्रोचार से नई ऊर्जा का स्फुरण किया। बाल संत मुनि जयदीपकुमारजी ने गीतिका का संगान किया। तेरापंथी सभा द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में सभा अध्यक्ष कौशिक सुराणा, सुधीर बांठिया, जयेश सुराणा, मयूर आच्छा, भावना सेठिया, सुनीता सेठिया का विशेष सहयोग रहा। इस आयोजन में तेरापंथ महिला मंडल एवं तेरापंथ युवक परिषद् का अतुलनीय सहयोग रहा। अंत में आभार ज्ञापन महेंद्र मरलेचा ने किया।