सत्य न बोल सकते तो चुप हो जाओ परन्तु असत्य मत बोलो: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

सत्य न बोल सकते तो चुप हो जाओ परन्तु असत्य मत बोलो: आचार्यश्री महाश्रमण

27 अगस्त, 2023 नन्दनवन-मुम्बई
आगम बोधि प्रदाता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगल देशना प्रदान कराते हुए फरमाया कि भगवती सूत्र में कहा गया है- हमारे जीवन में प्रवृत्ति होती है। प्रवृत्ति के तीन साधन हमारे पास हैं- शरीर, वाणी और मन। हम शरीर से अनेक कार्य करते हैं। बोलने से भी कई कार्य हो जाते हैं। मन से हम चिन्तन, स्मृति और कल्पना करते हैं। आत्मा स्थायी है, परन्तु विनाशवान है। शरीर समाप्त हो सकता है, परन्तु आत्मा स्थायी है, मूल है। इस जीवन से पहले भी थी और आगे भी रहेगी। आत्मा के साथ ये तीन प्रवृत्ति के साधन हैं- ‘शरीर, वाणी और मन।’
भगवती सूत्र में यहां प्रश्न किया गया कि भाषा आत्मा है या आत्मा से अन्य है? उत्तर दिया गया- गौतम! भाषा आत्मा नहीं है, भाषा आत्मा से अन्य है। भाषा पुद्गल है, आत्मा चेतन्यमय है। प्रश्न किया गया कि भाषा रूपी है या अरूपी है? उत्तर दिया गया- भाषा रूपी है, मूर्त्त है। मूर्त्त चीज दिखाई दे सकती है पर कई मूर्त्त चीजें दिखाई नहीं भी दे सकती है, जैसे-हवा। वह स्पर्शनेन्द्रिय के द्वारा अनुभूत होती है। भाषा भी श्रोतेन्द्रिय का विषय है, उससे पकड़ मंे आ सकती है।
आगे प्रश्न किया गया कि भाषा सचित् है या अचित्? उत्तर दिया- भाषा सचित् नहीं है अचित् है। कारण भाषा में चेतना नहीं है। चौथा प्रश्न- भाषा जीव है या अजीव है? उत्तर भाषा अजीव होती है। पांचवां प्रश्न है- भन्ते! जीवों के भाषा होती है, अजीवांे के भाषा होती है? भाषा जीवों के होती है, अजीवों के भाषा नहीं होती। प्राणी ही बोलता है। अंतिम प्रश्न किया गया- भन्ते! भाषा कितने प्रकार की होती है? उत्तर दिया गया- गौतम! भाषा के चार प्रकार प्रज्ञप्त हैं- सत्या, मृषा, सत्य-मृषा, असत्यामृषा। या सत्य, असत्य, मिश्र और व्यवहार भाषा।
आदमी भाषा के द्वारा चर्चा-बहस कर सकता है। मनुष्य के पास विशेष प्रकार की भाषा लब्धि है। बोलना हमारा जीवन का अंग है। न बोलना संयम की साधना है। बोलने व न बोलने में विवेक रखना बहुत बड़ी बात है। सत्य बोलो, प्रिय बोलो। वह सत्य मत बोलो जो अप्रिय होता है। वह प्रिय भी मत बोलो जो असत्य होता है।
सच्चाई परेशान तो हो सकती पर परास्त नहीं हो सकती। सच्चाई में कठिनाई आ सकती है, अन्तिम विजय सत्य की ही होती है। झूठ कपट से बचने का गृहस्थ प्रयास रखें। सत्य न बोल सको तो चुप रह जाओ पर झूठ तो न बोलें। सत्य एक तपस्या है। झूठ बोलना पाप है। जीवन मंे नैतिकता-प्रामाणिकता रहे। जीवन में धर्म का प्रभाव रहना चाहिये। कर्म के साथ अहिंसा के रूप मंे धर्म जुड़ना चाहिये। हम व्यवहार में धर्म को प्रतिष्ठापित करने का प्रयास करें।
मुख्य मुनिप्रवर ने पूज्यवर के 50वें दीक्षा कल्याणक महोत्सव के बारे में बताया कि यह 04 मई 2023 को शुरू हुआ था और 22 मई 2024 को समापन होगा। पूज्यवर ने फरमाया है कि इस वर्ष में ज्यादा से ज्यादा मुमुक्षु तैयार हों। इस संदर्भ में एक शिविर 15 अक्टूबर से 23 अक्टूबर तक सघन साधना शिविर के रूप में रखने का चिन्तन हुआ है। इस शिविर का सार यही है कि लोग आंशिक रूप से साधु जीवन का अनुभव कर सकें। इस शिविर में केवल 10 से 45 वर्ष के पुरुष ही संभागी बन सकते हैं।
पूज्यवर ने विमला हिरण को 15 की तपस्या के प्रत्याख्यान करवाये।
साध्वीप्रमुखाश्रीजी ने फरमाया कि पांच आयारों में वीर्याचार का महत्व है। वीर्य यानी शक्ति। शक्ति सम्पन्न व्यक्ति ही ज्ञान, श्रद्धा और दर्शन के क्षेत्र में आगे बढ़ सकता है। चारित्र की आराधना भी कर सकता है। तप की आराधना भी शक्ति संपन्न ही कर सकता है। प्रत्येक व्यक्ति में अनन्त ज्ञान, अनन्त आनन्द और अनन्त शक्ति है पर हम उसका पूरा उपयोग नहीं कर रहे हैं।
साध्वीवर्याजी ने फरमाया कि सकारात्मक चिंतन से हमारा विकास हो सकता है। समय का रचनात्मक कार्यों में सदुपयोग करें, अंकन करें। निन्दा-चुगली से पाप कर्म का बंध होता है। पाप कर्म का मुख्य कारण है, मोहनीय कर्म का उदय है।
अस्थि रोग विशेषज्ञ डॉ0 धीरज मरोठी ने घुटनों व पीठ की बीमारी की जानकारी देते हुए उसके कारण और निवारण के उपाय बताये।