अच्छे परिणामों के साथ जीवन यात्रा का समापन श्रेयस्कर: आचार्यश्री महाश्रमण
30 अगस्त, 2023 नन्दनवन-मुम्बई
महातपस्वी युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने भगवती सूत्र की व्याख्या कराते हुए फरमाया कि प्रश्न किया गया! भन्ते! मरण के कितने प्रकार प्रज्ञप्त है? उत्तर दिया गया- गौतम! मरण के पांच प्रकार प्रज्ञप्त हैं- जैसे आवीचि मरण, अवधि मरण, अत्यंतिकि मरण, बाल मरण और पंडित मरण। प्राणी जन्म लेता है, जीवन जीता है और एक दिन देहावसान हो जाता है। इस प्रकार तीन चीजें हो जाती है। जीवन का आदि बिन्दु, जीवन का समापन और मध्यवर्ती काल। जन्म होना प्रत्यक्ष रूप में हमारे हाथ की बात नहीं है। कहां और कैसे जन्म होगा? कहां मौत आयेगी, हमारे हाथ में नहीं है। हम जीवन पर ध्यान दें। वर्तमान में जीवन अनिश्चित रहता है। जीवनकाल कितना मिलेगा इस पर ध्यान न देकर, मेरा जीवन कैसा रहे, इस पर हम ध्यान दें।
हम चारित्रात्माओं का काम है कि हम आत्मा की रक्षा का ध्यान दें। ज्यादा खतरा हमें मोहनीय कर्म से है। उससे हम आत्मा की रक्षा करने का प्रयास करें। अन्तिम श्वास तक हमारा साधुपन ठीक रहे। इन्द्रियों का संयम रखें। कोई राग-द्वेष किसी के प्रति न रहे। सुरक्षित आत्मा सब दुःखों का अन्त कर लेती है। क्या? कैसे? क्यों? ये तीन प्रश्न महत्वपूर्ण है। अध्यात्म की दुनिया में आत्मा की रक्षा करना सर्वाेपरी लक्ष्य है। रक्षा भी सतत करो। हम पंडित मरण को प्राप्त करें। अनशन में समाधि मरण होना अच्छी बात होती है। संथारा आना भी अच्छा है। कलापूर्ण जीवन जीयें तो मौत भी कलापूर्ण तरीके से आये। महाप्रयाण से पहले आलोयणा अच्छी हो जाये। अच्छे परिणामों में जीवन यात्रा संपन्न हो, ये हमारे लिए श्रेयस्कर हो सकता है। आज द्वितीय श्रावण शुक्ला-चतुर्दशी है। पक्खी भी आज है। भाद्रव महीना तो धर्म का समय है। पर्युषण की भी आध्यात्मिक आराधना हो।
पूज्यवर ने हाजरी का वाचन किया। नवदीक्षित मुनियों ने लेखपत्र का वाचन किया। मुनि विपुलकुमारजी को 21 कल्याणक एवं मुनि देवकुमारजी को 2 कल्याणक बख्शीश करवाये। सामूहिक लेख पत्र का वाचन हुआ। पूज्यवर ने प्रेरणाएं प्रदान करवायी। चित्त समाधि में रहते हुए संघ सेवा करते रहें। साध्वी उदितयशाजी ने पूज्यवर से 31 की तपस्या के प्रत्याख्यान ग्रहण किये। पूज्यवर ने उनकी संसारपक्षीय भोजाइसा के देहावसान के बाद अपने बड़े भाई सुजानमलजी को आध्यात्मिक प्रेरणाएं प्रदान कराई। पूरे परिवार में चित्त समाधि रहे। सुजानमलजी ने भी अपनी भावना अभिव्यक्त की।
साध्वीवर्याजी ने मन की अशुभ प्रवृत्ति के कारणों को समझाया। स्वनिंदा करना अच्छा है। परनिंदा करना आत्मा को मलीन बना सकता है। निंदा आत्म साक्षी से और गर्हा गुरु साक्षी से की जाती है। अपनी निंदा करना आत्मा के लिए हितकारी बताया गया है। मेरी भूलों को मैं देखूं, दूसरे नहीं। अभातेयुप के तत्वावधान में स्थानीय तेयुप परिषदों द्वारा रक्षा बन्धन कार्यशाला का आयोजन हुआ। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।