लोकोपचार विनय का पालन है बड़प्पन की पहचान: आचार्यश्री महाश्रमण
31 अगस्त 2023, नन्दनवन-मुम्बई
आगम वाणी के व्याख्याता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगलदेशना प्रदान कराते हुए फरमाया कि भगवती सूत्र में एक लोकोपचार विनय की व्यवस्था की बात बतायी गई है। कुछ व्यावहारिक रीति-रिवाज होते हैं कि अपने से जो बड़े होते हैं या मेहमान है, उनके साथ व्यवहार में कैसा उपचार निभाया जाये। इस उपचार में सृष्टि के जीवों के बारे में कुछ विवेचन बताया गया है। हमारी सृष्टि में जो सिद्ध जीव हैं, वे तो मुक्त हैं। वे तो हमारे लिए परम वन्दनीय आत्माएं हैं। सृष्टि के सारे संसारी जीव चार गतियों में आ गये। प्रश्न किया गया है कि नरक गति में जो नैरियक है, उनमें आपस में क्या व्यवहार रहता है?
हमारे व्यवहार में शिष्टचार होता है कि आने वाले बड़े हैं तो उनका सम्मान करें। नैरियक जीवों में सम्मान जैसा शिष्टाचार नहीं होता है। स्थावर काय के जीवों में शिष्टाचार का व्यवहार होता है क्या? इनमें भी नहीं होता। विकलेन्द्रिय में भी शिष्टचार नहीं होता है। स्थावर व विकलेन्द्रिय में मन नहीं है। नैरियक संज्ञी पंचेन्द्रिय है, पर उनके भाव इतने शुद्ध नहीं रहते हैं कि वे शिष्टाचार कर सके। देवों में यह शिष्टाचार रहता है चाहे वो भवनपति, व्यंतर, ज्योतिषक या वैमानिक देव हो। तिर्यन्च जो पंचेन्द्रिय है, उनमें कुछ शिष्टाचार होता है, कुछ में नहीं भी होता है। उनमें भाषा का तो विकास है नहीं।
मनुष्यों में हर प्रकार के सम्मान होते हैं। हम साधुओं में ये लोकोपचार विनय विशेष होता है। साध्वियों में, समणियों में भी विशेष होता है। बड़ों का गृहस्थों में भी विशेष सम्मान-सत्कार होता है। ये शिष्टाचार की व्यवस्था रही है। शिक्षक, राजनेता का उस हिसाब से सम्मान होता है। लोकोपचार विनय देवों और मनुष्यों में ही रहता है। कालूयशोविलास की विवेचना करते हुए पूज्यवर ने युवाचार्य की दैनिकचर्या के प्रसंग को समझाया। पूज्य कालूगणी ने युवाचार्य को जो शिक्षाएं एवं दायित्व फरमाया उस प्रसंग को भी समझाया।
पूज्यवर से खुशबू कोठारी ने अठाई, मधुरा संचेती ने ग्यारह की तपस्या के प्रत्याख्यान लिए। अणुविभा ने अणुव्रत संकल्प यात्रा का बैनर का अनावरण पूज्यवर की सन्निधि में किया। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।