राग और मोह भाव से बचने का हो प्रयास: आचार्यश्री महाश्रमणजी
04 सितम्बर, 2023 नन्दनवन-मुम्बई
महामनीषी युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने भगवती सूत्र की विवेचना कराते हुए फरमाया कि भगवान महावीर राजगृह में विराजमान हैं। परिषद देशना सुन लौट गई थी। भगवान ने गौतम स्वामी से कुछ वार्तालाप किया। गौतम स्वामी भी भगवान के बहुत निकट रहने वाले थे। गौतम स्वामी प्रथम कोटि के संत थे।
गौतम स्वामी एक बार अधीर होकर बोले- भगवन्! मेरे द्वारा दीक्षित साधुओं को केवलज्ञान हो रहा है, पर मैं अभी तक छद्मस्थ ही बैठा हूं। भगवान ने संबल प्रदान कराते हुए फरमाया- हे गौतम! तुम्हारे साथ मेरा पुराना संसर्ग है। मुझसे चिरकाल से परिचित और प्रीतिपरायण रहे हो। पीछे के जन्म में भी तुम मेरे प्रति प्रेम रखने वाले रहे हो। हमारा कई जन्मों का सम्बन्ध है। तुम्हारा यह जो स्नेह-राग भाव है, वही राग भाव केवल ज्ञान की प्राप्ति में अवरोध पैदा कर रहा है। वह मोह का ही एक अंश है। मेरे जाने के बाद तुम्हें भी केवलज्ञान की प्राप्ति होगी।
राग भाव के भी अनेक स्तर होते हैं। जैसे प्रशस्त राग-अप्रशस्त राग। मोक्ष की प्राप्ति में प्रशस्त राग भी बाधक बन जाता है। भगवान निर्वाण को प्राप्त हुए तो गौतम का राग भाव भी हटा और वे भी केवलज्ञानी बन गये।
इससे यह प्रेरणा लेनी चाहिए कि अधिक राग और मोह भाव से बचने का प्रयास करना चाहिए। स्नेह का भाव, राग का भाव कभी दुःखी भी बना सकता है। माता-पिता के सामने पुत्र चला जाता है। युवावस्था में पत्नी के सामने पति चला जाता है। मोह का भाव भी आ सकता है। मृत्यु किसी के वश में नहीं होती। संयोग होता है, उतना ही साथ मिल सकता है। ऐसी स्थिति में आदमी को यह धैर्य व साहस रखने का प्रयास करना चाहिए।
जैन विश्व भारती द्वारा प्रकाशित भगवती सूत्र के सातवें खंड की प्रथम प्रति जैन विश्व भारती के पदाधिकारीगण आदि द्वारा पूज्यवर को निवेदन करते हुए लोकार्पित की गई। पूज्यवर ने फरमाया कि पूज्य कालूगणी ने भी भगवती सूत्र पर व्याख्यान किया था। पूज्य जयाचार्य ने तो अनेक राग-रागनियों में भगवती जोड़ की रचना राजस्थानी काव्य में की थी। भगवती सूत्र में अनेक विषय मिलते हैं। आज भगवती जैसे विशालकाय आगम का यह सातवां खंड प्रकाशित होकर आया है। परम पूज्य गुरुदेव तुलसी के समय से आरम्भ हुआ आगमों का यह कार्य आज भी चल रहा है। किसी समय महासभा आगमों के प्रकाशन का कार्य करती थी, किन्तु अब जैन विश्व भारती आगमों, ग्रंथों आदि के प्रकाशन का काम करती है। इसमें साधु-साध्वियों और श्रावक समाज का भी योगदान है। बहुश्रुत परिषद के पूर्व संयोजक मुनि महेन्द्रकुमारजी के साथ के संतों का श्रम रहा है। संत और भी निर्जरा का काम करते रहें। मुनि अभिजीतकुमारजी ने भगवती सूत्र के सातवें खंड के बारे में अपने अभिव्यक्ति दी।
पूज्यवर ने खुशबू चिंडालिया को 66 की तपस्या एवं अन्य तपस्वियों को उनकी तपस्या के प्रत्याख्यान करवाये।
गुरुदेव ठिकाणा सेवा के संयोजक अविनाश इंटोदिया ने अपनी भावना व्यक्त करते हुए अपनी टीम के साथ गीत का सुमधुर संगान किया। उन्होंने गीत के माध्यम से पूज्यवर को चरणस्पर्श शुरू करवाने का सविनय निवेदन किया।
कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।