जीवन में नैतिकता-ईमानदारी का आना भी धर्म ही है: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

जीवन में नैतिकता-ईमानदारी का आना भी धर्म ही है: आचार्यश्री महाश्रमण

09 सितम्बर 2023, नंदनवन मुंबई
जिन शासन प्रभावक आचार्यश्री महाश्रमणजी ने भगवती सूत्र की विवेचना करवाते हुए फरमाया कि एक बार प्रथम देवलोक का इन्द्र शक्र भगवान महावीर के पास पहुंच जाता है, पर्युपाषना करता है, धर्म कथा होती है। वह इन्द्र धर्म सुनकर हष्ट-पुष्ट हुआ। वन्दन नमस्कार कर प्रश्न पुछता है कि भन्ते! अवग्रह कितने प्रकार का प्रज्ञप्त है?
भगवान महावीर ने उत्तर दिया कि अवग्रह पांच प्रकार के होते हैं- देवेन्द्र अवग्रह, राज अवग्रह, गृहपति अवग्रह, सागरिक अवग्रह और साधर्मिक अवग्रह। प्रथम देवलोक के इन्द्र के अधिकार की जो भूमि होती है, वह देवेन्द्र अवग्रह होती है। चक्रवर्ती के अधिकार की भूमि राज अवग्रह होती है। छोटा मांडलिक राजा के अधिकार का क्षेत्र गृहपति अवग्रह होता है। गृहस्थ के अधिकार की भूमि सागरिक अवग्रह होती है। साधु-साधु का अपना विधान होता है, वह साधर्मिक अवग्रह है। साधु-साध्वियों के चातुर्मास व शेषकाल की अलग- अलग विधा होती है।
शक्र जंबू द्वीप के दक्षिणी भाग भरत क्षेत्र के अधिकारी होते हैं। साधु तो अपरिग्रह का धारक होता है। कोई मकान, पैसा उनके पास नहीं होता है। साधु तो अकिंचन है, लेकिन किन्हीं प्रमाणों के आधार पर वह तीन लोक का मालिक होता है। कारण उसने सब कुछ छोड़ दिया। जिसके पास कोई आगार नहीं होता, वह अनगार साधु होता है। अनगार के सामने दुनिया की सारी डिग्रियां ना-कुछ सी होती हैं। यह साधु का त्याग है। साधु तो निर्वग्रह होता है। साधु की जिंदगी से साधुता न जाये।
गृहस्थ साधु-साध्वियों को प्रवास हेतु अपना मकान देते हैं, आहार आदि देते हैं तो उनका अपने अवग्रह के प्रति मोह कम हो जाता है, जिससे उनकी आत्मा का कल्याण की दिशा में प्रस्थान हो सकता है। त्यागियों के गृहस्थ की चीज काम आये तो अच्छा काम हो सकता है।
पूज्यवर ने कालूयशोविलास की विवेचना कराते हुए पूज्य कालूगणी के महाप्रयाण के पश्चात माजी महाराज छोगांजी की व्यथा और बाद में उनके संभल जाने के प्रसंग को व्याख्यायित किया। कालूगणी की शोभायात्रा के प्रसंग का भी वर्णन किया। पूज्यवर ने कालूयशोविलास व्याख्यानमाला को संपन्न कराते हुए फरमाया कि भाद्रपद शुक्ला नवमी को तेरापंथ नवम आचार्य पद पर आचार्यश्री तुलसी का पदारोहण हुआ।
पूज्यवर के सान्निध्य में तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम द्वारा ‘जैनिज्म वे ऑफ लाईफ’ विषय पर आयोजित चतुर्थ प्रशासनिक अधिकारी सम्मेलन आयोजित हुआ, जिसमें देश भर से काफी संख्या में प्रशासनिक अधिकारी उपस्थित हुए। अशोक कोठारी ने सभी आगंतुकों का स्वागत किया। पराग जैन एवं तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम के राष्ट्रीय अध्यक्ष पंकज ओस्तवाल ने भी अपनी भावना अभिव्यक्त की। कुछ प्रशासनिक अधिकारियों ने भी अपने विचार प्रस्तुत किये।
पूज्यवर ने आशीर्वचन प्रदान करते हुए फरमाया कि दुनिया में दो तत्त्व जीव और अजीव हैं। दुःख मुक्ति के लिए धर्म-अध्यात्म की साधना करें। अहिंसा, संयम और तप के रूप में जैनिज्म वे ऑफ लाईफ को समझने का प्रयास करें। काम और क्रोध आदमी को पाप की ओर ले जाता है। प्रशासनिक क्षेत्र में कार्य करने वाले धर्म को भी जीवन में लाने का प्रयास करें। कर्म के साथ धर्म को जोड़ दंे। जीवन में नैतिकता-ईमानदारी आ जाए तो भी एक प्रकार का धर्म ही है। अहिंसा का पालन हो। खानपान व वाणी का संयम हो। नशामुक्त जीवन जीने का प्रयास हो। आचार्यश्री ने अधिकारियों को कुछ क्षण प्रेक्षाध्यान का प्रयोग भी कराया।
कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमारजी ने किया।