अवबोध
कर्म बोध
प्रश्न 18- संक्रमण किसे कहते र्हैं?
उत्तर: शुभाशुभ प्रवृत्ति से कर्म की उत्तर प्रकृतियों का अपनी सजातीय प्रकृतियों में बदल जाना संक्रमण है। जैसे- मति ज्ञानावरणीय का श्रुत ज्ञानावरणीय व श्रुत ज्ञानावरणीय का मति ज्ञानावरणीय में, क्रोध का मान व मान का क्रोध के रूप में बदल जाना संक्रमण है। ज्ञानावरणीय का मोहनीय आदि कर्म प्रकृतियों में संक्रमण नहीं होता।
प्रश्न 19- क्या सभी कर्म प्रकृतियों का संक्रमण होता है?
उत्तर: आयुष्य कर्म का संक्रमण नहीं होता। दर्शन मोह और चारित्र मोह का परस्पर में संक्रमण नहीं होता। निधत्ति व निकाचित बंधी कर्म-प्रकृतियों का संक्रमण नहीं होता। शेष समस्त कर्म प्रकृतियों का परस्पर संक्रमण हो सकता है।
प्रश्न 20- सोपक्रमी व निरुपक्रमी आयुष्य किसे कहते हैं ?
उत्तर: जिस आयुष्य कर्म के उपक्रम-उपघात लगता है, वह सोपक्रमी आयुष्य होता है। जिसके कोई उपक्रम नहीं लगता, वह निरुपक्रमी आयुष्य है। जितने वर्ष का आयुष्य लेकर कोई जीव आता है उसमें एक समय का भी अंतर नहीं पड़ता, उसे निकाचित आयुष्य कहते हैं। (क्रमशः)