उपयोगी और निष्पत्तिमूलक उपक्रम है ज्ञानशाला - आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

उपयोगी और निष्पत्तिमूलक उपक्रम है ज्ञानशाला - आचार्यश्री महाश्रमण

03 सितम्बर 2023 नन्दनवन-मुम्बई
महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आगम वाणी का रसास्वादन कराते हुए फरमाया कि भगवती सूत्र में नरक-देव गति आदि के बारे में बताया गया है। पाप करने वाले प्राणी नरक में जाते हैं। अच्छे कर्म करने वाले प्राणी स्वर्ग में जाते हैं। नरक में एक अप्रिय-अनिष्ट शब्द, रूप, रस, गंध आदि नारकीय जीवों को मिलती है। नारकीय जीव अपना पुरूषार्थ भी अनिष्ट करते हैं। असुरकुमार आदि देवता इसके विपरीत इष्ट शब्द, इष्ट रूप आदि का अनुभव करते हैं। उनका उत्थान, कर्म, बल, वीर्य, पराक्रम भी इष्ट होता है। आदमी को यह चिन्तन करना चाहिये कि सौभाग्य से मुझे मनुष्य जन्म मिला है। मैं ऐसे कार्य न करूं, जिससे मुझे नरक में जाना पड़े। मैं अच्छे मार्ग पर चलूं।
ज्ञानशाला दिवस पर ज्ञानार्थियों को सम्बोध प्रदान कराते हुए आचार्य प्रवर ने फरमाया कि ज्ञानशाला के माध्यम से बालपीढ़ी में अच्छे संस्कारों का बीजारोपण हो सकता है। बच्चों में ज्ञान बढ़ने के साथ अच्छे संस्कार भी आये। बालपीढ़ी संस्कारित होगी तो देश का भविष्य अच्छा हो सकता है।
ज्ञानशाला के छोटे-छोटे बच्चों में धर्म का ज्ञान और अच्छे संस्कार आ जाये तो बहुत अच्छा काम हो सकता है। ज्ञानशाला उपयोगी, महत्वपूर्ण और निष्पतिमूलक उपक्रम है। अच्छे धार्मिक, आध्यात्मिक संस्कार मिल जाये तो भावी पीढ़ी अच्छी हो सकती है। कितने प्रशिक्षक ज्ञान देने का प्रयास करते हैं। गुरुदेव तुलसी के समय शुरु हुई ज्ञानशाला वर्तमान में भी उपयोगी बनी हुई है और प्रगति कर रही है।
असम राज्य के राज्यपाल महोदय गुलाबचन्द कटारिया आचार्य प्रवर की पावन सन्निधि में सपरिवार उपस्थित हुए। पूज्यवर ने राज्यपाल महोदय को संबोधित करते हुए फरमाया कि राजनीति भी एक सेवा का कार्य है। सबके जीवन में अहिंसा, नैतिकता के संस्कार हों। वर्तमान में हमारी अणुव्रत यात्रा चल रही है। अणुव्रत के संकल्प जैन-अजैन कोई भी अपना सकते हैं। अणुव्रत से अच्छे संस्कार जगाने का प्रयास किया जा सकता है। कटारियाजी से पुराना सम्पर्क है। वे आध्यात्मिक-नैतिक सेवा करते रहंे।
राज्यपाल महोदय गुलाबचन्द कटारिया ने कहा कि मैं भाग्यशाली हूं कि मैंने गुरुदेव तुलसी, आचार्यश्री महाप्रज्ञजी और आचार्यश्री महाश्रमणजी को नजदीक से देखा है, सुना है और उनसे कुछ मार्गदर्शन लेने का भी प्रयास किया है। मेरा सौभाग्य है कि असम के राज्यपाल का दायित्व संभालने के बाद आज पहली बार आपके दर्शन का सुअवसर प्राप्त हुआ है। मैं जैन कुल में पैदा हुआ हूं और अपने आचरण से भी जैन हूं। जैन धर्म के नियमों को पालते हुए मैं राजनीति का कार्य कर रहा हूं। आचार्यश्री तुलसी के अणुव्रत गीत के सारे गुण हमारे में आ जाये। अणुव्रत के माध्यम से आचार्यश्री तुलसी ने भटके हुए लोगों को जोड़ने का प्रयास किया है। आपकी अहिंसा यात्रा से भी आम आदमी जुड़ा है। मैं भी मेरे कार्य ईमानदारी से करता रहूं, यही आपसे आशीर्वाद चाहता हूं। संस्कारविहीन शिक्षा का कोई मूल्य नहीं है। आपने असम में भी पैदल यात्रा कर लोगों को शांति का संदेश दिया था। मैं धर्मसंघ का श्रावक बनकर देश के लिए, पार्टी के लिए कार्य करूंगा।
ज्ञानशाला दिवस पर उद्बोधन प्रदान करते हुए साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी ने फरमाया कि वर्तमान भौतिक जीवनशैली के कारण बच्चों में कई बुरी स्थितियां आ रही है। बच्चे मानसिक एवं भावनात्मक रूप से कमजोर हो रहे हैं। गुरुदेव तुलसी ने ज्ञानशाला के माध्यम से बच्चों के आध्यात्मिक विकास के लिए एक नया प्रकल्प दिया। ज्ञानशाला में छोटे बच्चों को अच्छे संस्कार दिये जाते हैं, जिससे उनका भावी जीवन अच्छा हो एवं उनका गुणात्मक विकास हो।
साध्वीवर्या सम्बुद्धयशाजी ने फरमाया कि मनुष्य जीवन एक बहुत सुन्दर उद्यान है। इसकी सुरक्षा के लिए इन्द्रिय संयम की बाड़ अपेक्षित है। असंयम से आदमी पाप में लिप्त रहता है। हम रति (असंयम) में न उलझें। अरति (त्याग-संयम) की आराधना करें।
आचार्यश्री महाश्रमण चातुर्मास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष मदनलाल तातेड़, शान्तिलाल नान्द्रेचा ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। तेरापंथी सभा, मुंबई के कार्याध्यक्ष नवरतनमल गन्ना एवं ज्ञानशाला की अंचालिक संयोजिका अनिता परमार ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। ज्ञानशाला ज्ञानार्थियों ने सुमधुर कव्वाली, कंठस्थ ज्ञान, पच्चीस बोल, भक्तामर, तेरापंथ प्रबोध, प्रतिक्रमण आदि विभिन्न प्रस्तुतियां दी। व्यवस्था समिति द्वारा महामहिम राज्यपाल महोदय का सम्मान किया गया। पर्युषण पर्वाराधना के नन्वान्हिक कार्यक्रम का कार्ड पूज्यवर को सादर निवेदित किया गया। पूज्यवर ने आशीर्वचन फरमाया।
हेमा डांगी ने सिद्धितप के अन्तर्गत 8 की तपस्या का प्रत्याख्यान पूज्यवर से ग्रहण किया। पूज्यवर ने अन्य तपस्याओं के प्रत्याख्यान करवाये। आचार्यप्रवर के मंगलपाठ और राष्ट्रगान के साथ कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।
कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।