उपासना
प्रेक्षाध्यान
दीर्घश्वास प्रेक्षा
श्वास की गति को मन्द करें। लम्बा श्वास लें, लम्बा श्वास छोड़ें। श्वास लयबद्ध और समताल करें। (पहली बार श्वास को लेने और छोड़ने में जितना समय लगे इ दूसरी बार भी उतना ही समय लगे, तीसरी बार भी उतना ही समय लगे) इस सुझाव को प्रारम्भ में एक-दो बार दिया जाए।
श्वास के कम्पन नाभि तक पहुंचे। श्वास लेते समय पेट की मांसपेशियां फूलें, छोड़ते समय सिकुड़ें। चित्त को नाभि पर केन्द्रित करें और पेट की मांसपेशियों के फूलने और सिकुड़ने का अनुभव करें तथा उनके द्वारा आते-जाते श्वास का अनुभव करें। प्रत्येक श्वास की जानकारी बनी रहे।
गहरी एकाग्रता और पूरी जागरूकता के साथ दीर्घश्वास प्रेक्षा का अभ्यास करें।... अभ्यास की निरन्तरता को बनाए रखें।
(कुछ समय बाद) चित्त को नाभि से हटाकर दोनों नथुनों के भीतर संधि-स्थल पर केन्द्रित करें। लम्बा, लयबद्ध श्वास चालू रखते हुए आते-जाते प्रत्येक श्वास का अनुभव करें।
(बीच-बीच में यह सुझाव देते रहें) लम्बा, लयबद्ध श्वास चालू रहे। प्रत्येक श्वास को जानते हुए लें, जानते हुए छोड़ें, चित्त की सारी शक्ति श्वास को देखने में लगा दें। केवल श्वास का ही अनुभव करें....
(एक-दो बार यह सुझाव दें-)
यदि विकल्प आते हैं, तो उन्हें रोकने का प्रयत्न न करें। केवल द्रष्टाभाव से देखें और बीच-बीच में श्वास-संयम का प्रयोग करें। श्वास के प्रति जागरूक रहें। केवल श्वास का ही अनुभव करें।
ज्योति केन्द्र प्रेक्षा
चित्त को ललाट के मध्य भाग में ज्योति केन्द्र पर केन्द्रित करें और वहां पर चमकते हुए श्वेत रंग का ध्यान करें। अनुभव करें- जैसे पूर्णिमा का चांद उग रहा है, उसकी श्वेत रश्मियां ज्योति केन्द्र पर गिर रही हैं अथवा किसी भी चमकती हुई श्वेत वस्तु का आलम्बन लें। ज्योति केन्द्र पर श्वेत रंग का साक्षात्कार करें।...
- अनुभव करें... पूर्णिमा के चांद की श्वेत रश्मियां ज्योति केन्द्र पर गिर रही हैं।
- अनुभव करें- क्रोध शांत हो रहा है।
- आवेग और आवेश शांत हो रहे हैं।
- वासनाएं शांत हो रही हैं।
(दो या तीन मिनट के बाद) (1) अब चित्त को पूरे ललाट पर फैलाएं, पूरे ललाट पर श्वेत रंग का ध्यान करें।
(2) अनुभव करें कि पूरे ललाट में भीतर तक श्वेत रंग के परमाणु प्रवेश कर रहे हैं।
(3) पूरा ललाट श्वेत रंग के परमाणुओं से भर रहा है। शांति व आनन्द का अनुभव करें।....
दो-तीन लम्बे श्वास के साथ अभ्यास को संपन्न करें।
समापन विधि
विवेकसूत्र सुअप्पणा सच्चमेसेज्जा मेत्तिं भूए कप्पए। (तीन बार)
स्वयं सत्य खोजें, सबके साथ मैत्री करें। (तीन बार)
आहंसु विज्जा चरणं पमोक्खं। (तीन बार)
दुःखमुक्ति के लिए विद्या और आचार का अनुशीलन करें। (तीन बार)
शरण-सूत्र: अरहंते सरणं पवज्जामि
सिद्धे सरणं पवज्जामि
साहू सरणं पवज्जामि
केवलि - पण्णत्तं धम्मं सरणं पवज्जामि। (तीन बार )
श्रद्धा-सूत्र: वंदे सच्चं। (तीन बार)
विधि- वन्दनासन की मुद्रा में पहले पूरा श्वास भरें, श्वास छोड़ते हुए ‘वन्दे’ बोलते हुए सिर सामने रहे, ‘सच्चं’ बोलते हुए नीचे जमीन तक झुकें, फिर श्वास भरते हुए ऊपर उठें, तीन बार दोहराएं।