बोलने या न बोलने का विवेक होना  है बड़ी बात : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

बोलने या न बोलने का विवेक होना है बड़ी बात : आचार्यश्री महाश्रमण

15 सितम्बर 2023 नन्दनवन, मुम्बई
पर्युषण पर्वाराधना के चतुर्थ दिवस पर वाचना प्रमुख आचार्यश्री महाश्रमणजी ने भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा के क्रम को आगे बढ़ाते हुए फरमाया कि भगवान महावीर की आत्मा के तीसरे भव में मरीचिकुमार के रूप में वर्णन चल रहा है। मरीचिकुमार को भगवान ऋषभ की प्रेरणा मिली और उसने साधु दीक्षा स्वीकार कर ली। दीक्षा के बाद मरीचिकुमार ने ग्यारह अंगों का अध्ययन आरम्भ किया। मरीचिकुमार को धूप, गर्मी आदि के कारण प्यास बर्दाश्त नहीं होती और वह जैन साधुचर्या को छोड़कर एक अलग रूप में त्रिदण्ड, छत्र आदि धारण कर लेता है। गुरु के लिए संतोष की बात तो तब होती है जब उनका शिष्य उनसे आगे बढ़े। घड़े में सीमित जल आता है। अगस्त्य ऋषि घड़े की संतान थे, वे समुद्र को पी गये। बेटा बाप से आगे निकल गया। वैसे ही मरीचि भरत चक्रवर्ती से आगे निकलेगा।
मरीचिकुमार के सम्यकत्व ग्रहण के प्रसंग के माध्यम से प्रेरणा प्रदान कराते हुए पूज्यवर ने फरमाया कि साधु को आगम के स्वाध्याय का विशेष प्रयास करना चाहिए। साधु-साध्वियों को आगम जितना कंठस्थ हो उतनी अच्छी बात हो सकती है। दसवेआलियं के साथ-साथ अन्य आगमों को भी पढ़ने और उन्हें यथासंभव कंठस्थ करने का प्रयास होना चाहिए। स्वाध्याय से ज्ञान और निर्जरा दोनों का लाभ प्राप्त हो सकता है। आगम कंठस्थ करने या पढ़ने से कर्मक्षय हो सकते हैं। आगमों के अलावा भी अन्य ग्रंथ हैं पर आगम का तो विशेष महत्व है। प्रातः कालीन व्याख्यान में आगम सूक्त रूपी रत्नों का व्याख्यान हो जाये तो अच्छी बात है। सुबह-सुबह ही आगम के अध्ययन का प्रयास करना चाहिए।
वाणी संयम दिवस पर मंगल पाथेय प्रदान करते हुए पूज्यवर ने फरमाया कि वाणी संयम करना, मौन करना बहुत महत्वपूर्ण होता है। बोलना या न बोलना बड़ी बात नहीं है। बोलने न बोलने में विवेक रखना बड़ी बात होती है। बोलें तो यतनापूर्वक बोलें, मित्त भाषा बोलें। बोलना भी वाणी का उपयोग है। पहले तोलो, फिर बोलो। द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव का ध्यान रखें। कटु भाषा मुंह से न निकले। व्‍यक्ति को बोलने या न बोलने का विवेक होना बड़ी बात है।
पूज्यवर ने तपस्वियों को उनकी धारणा के अनुसार प्रत्याख्यान करवाते हुए फरमाया कि तपस्या करने वालों को साधुवाद है। अठारह पापों से आत्मा बची रहे। हम धर्म की पूंजी कमाने का प्रयास करें। संवत्सरी का दिन धर्म के क्षेत्र में सिरमौर है। उस दिन सभी के उपवास हों।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी, मुख्य मुनिश्री महावीरकुमारजी एवं साध्वीवर्या सम्बुद्धयशाजी के प्रेरणादायक प्रवचन हुए। मुनि राजकरणजी, मुनि रजनीशकुमारजी, मुनि ध्रुवकुमारजी एवं साध्वी स्तुतिप्रभाजी ने भी अपनी अभिव्‍यक्तियां दी।
कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।