आत्मवाद है तो कर्मवाद है  : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

आत्मवाद है तो कर्मवाद है : आचार्यश्री महाश्रमण

11 सितम्‍बर 2023 नन्दनवन, मुम्‍बई
महातपस्‍वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन प्रेरणा प्रदान कराते हुए फरमाया कि भगवती सूत्र में प्रश्न किया गया है– भन्ते! कर्म प्रकृतियां कितनी प्रज्ञप्त है। उत्तर दिया गया– गौतम! आठ कर्म प्रकृतियां प्रज्ञप्त है। आठ कर्म जो जीव के साथ संसारी अवस्था में अपनी-अपनी स्थिति के अनुसार जुड़े हुए रहते हैं।
जैनदर्शन का प्रमुख सिद्धांत है कि आत्मवाद है तो कर्मवाद है। ये दोनों अध्यात्म से जुड़े हुए सिद्धान्त है। संसार शब्द जन्म-मरण की परम्परा से जुड़ा शब्द है। सृष्टि में जो है, वह लोकवाद है। आठ कर्मों का जीव के पर्याय परिवर्तन में भी बड़ा योगदान रहता है। भव्य क्यों है, अभव्य क्यों है, इसका कर्मवाद के साथ कोई लेना-देना नहीं है। अभव्य को भव्य बनाना हमारे हाथ की बात नहीं है। गृहस्थ को साधु नहीं बनाया जा सकता है।
नियतिवाद का एक सक्षम उदाहरण है– भव्यता और अभव्यता। यहां कोई पुरुषार्थ काम नहीं करता। पुरुषार्थ की भी एक सीमा है। नियति का जहां नितान्त क्षेत्र है, वहां पुरुषार्थ कोई काम नहीं कर सकता। यह अनादि परिणामिक भाव है। जीव को अजीव कोई नहीं बना सकता। यहां पर भी पुरुषार्थवाद काम नहीं करता है। यह तो नियतिवाद है। अजीव को भी जीव नहीं बनाया जा सकता है। यह अनादि अंतहीन परिणामिक भाव है। जिसकी जहां जितनी भूमिका है, उतने अंश में उस बात को समझ लेते हैं तो बात स्पष्ट हो सकती है। कर्मवाद, नियतिवाद, पुरुषार्थवाद, भाग्‍यवाद सारे अपेक्षित है। हम कर्मवाद के द्वारा थोड़ा इस गहराई में जा सकते हैं कि किस कर्म की निर्जरा कैसे होती है। अघाति कर्म और घाति कर्म के अलग-अलग कारण है। सम्यकत्व की निर्मलता के लिए श्रद्धा रखें। जो जिनेश्वर भगवान ने प्रवेतित किया है, वह सत्य है, वह सत्य ही है, निशंक है। यथार्थ के प्रति श्रद्धा हो, कषाय मन्द हो। अनाग्रह भाव से तत्त्व की जानकारी करें, समझने का प्रयास करें।
भाद्रव कृष्णा द्वादशी को तेरापंथ धर्मसंघ के चतुर्थ आचार्य श्रीमज्जयाचार्य के महाप्रयाण दिवस पर उनका पावन स्‍मरण करते हुए आचार्यवर ने फरमाया कि आज पूज्‍य श्रीमज्जयाचार्य की महाप्रयाण तिथि है। श्रीमज्जयाचार्य एक ज्ञानी-मनीषी व्यक्तित्व थे। वे छोटी उम्र में ही संत बन गये थे। अग्रणी बन युवाचार्य और आचार्य बने। तीस वर्ष तक उनका शासनकाल रहा। वे तत्त्ववेत्ता, अध्यात्मवेत्ता एवं विधिवेत्ता आचार्य थे। संघ संचालन में निपुण थे। उन्होंने संघ में खूब ज्ञान का भंडार भरा था।
पूज्‍यवर ने पर्युषण आराधना के बारे में प्रेरणाएं प्रदान करवायी।
जैन विश्व भारती द्वारा प्रकाशित शासन गौरव साध्वी कल्‍पलताजी द्वारा लिखित पुस्‍तक ‘तेरापंथ की 9 साध्वी प्रमुखाएं’ एवं समणी डॉ. मंजुलप्रज्ञाजी द्वारा लिखित पुस्तक ‘श्री विद्या एवं प्रेक्षाध्यान’ पूज्यवर के समक्ष लोकार्पित की गयी। इस संदर्भ में पूज्यवर ने आशीर्वचन फरमाया।
साध्वी प्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी, मुख्य मुनिश्री महावीरकुमारजी एवं साध्वीवर्या संबुद्धयशाजी ने पूज्‍य श्रीमज्जयाचार्य के प्रति अपनी विनयांजलि अर्पित की।
कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।