धर्म में रत होकर आत्मकल्याण करें : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

धर्म में रत होकर आत्मकल्याण करें : आचार्यश्री महाश्रमण

नंदनवन, 26 सितंबर, 2023
आचार्यश्री महाश्रमण जी के अनंतर पट्टधर, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण जी ने भगवती सूत्र की विवेचना करते हुए फरमाया कि तीन शब्द हैंµधर्म, अधर्म और धर्माधर्म। यहाँ प्रश्न किया गया है कि भंते! संयम, विरत, प्रतिहत, प्रत्याख्यात पाप कर्म वाला व्यक्ति क्या धर्म में स्थित होता है। जो असंयम है, अविरत है, अप्रत्याख्यात पाप कर्म वाला व्यक्ति अधर्म में स्थित होता है? और जो संयतासंयत है वह क्या धर्माधर्म में स्थित होता है। उत्तर दिया गया कि ठीक है, सही बात है कि साधु है, संयत है, विरत है, पाप-कर्म तोड़ने वाले हैं, ऐसे साधु धर्म में स्थित होते हैं। जो असंयत, अविरत व पापकर्मा जीव है वह अधर्म में स्थित होता है। जो संयतासंयत है, वे श्रावक होते हैं वे धर्माधर्म में स्थित होते हैं। यहाँ हम धर्म को संवर धर्म के रूप में मान लेते हैं।
साधु के तो सम्यक्त्व संवर और व्रत संवर भी है। इसलिए वह धर्म में स्थित है। साधु के तो अठारह ही पापों का त्याग है। उसकी चलने-फिरने, खाने-पीने की क्रिया धर्म में है। वह धर्मात्मा है। संवर-विरति की दृष्टि से असंयति धर्म में स्थित नहीं है। जो असंयमी-मिथ्यात्वी है उसके तपस्या-निर्जरा तो हो सकती है। पर संवर धर्म उसके नहीं है। उसके विरति नहीं है। पाँचवें गुणस्थान वाला श्रावक दोनों में है, उसके त्याग-व्रत भी है, पर कुछ अंश में है, इसलिए वह कुछ अंश में धर्मी भी है और अधर्मी तो है ही कारण उसके पूर्ण संयम नहीं है। पाप-कर्म गृहस्थ के चलते रहते हैं। वह मिश्र अवस्था में है। वह धर्माधर्म को स्वीकार कर चलता है। धर्म में रहना तो उच्च बात है। साधु तपस्या करना और साधना का प्रकर्ष हो जाता है। आचार्य भिक्षु ने आज के दिन संथारा स्वीकार किया था। आगे प्रस्थान की तैयारी कर ली थी।
आचार्य भिक्षु तेरापंथ धर्म के प्रतिष्ठापक, प्रथम अनुशास्ता थे। लगभग 77 वर्ष का उनका जीवनकाल रहा। उनकी उत्तरवर्ती आचार्य परंपरा में हमारे सप्तमाचार्य पुण्य डालगणी हुए जो एक तेजस्वी आचार्य के रूप में विख्यात हुए। वे कच्छी पूज भी कहलाते थे। वे एक विलक्षण आचार्य थे। उनका लगभग 12 वर्ष का नेतृत्व धर्मसंघ को प्राप्त हुआ था। एक युवा साधु मुनि कालू छापर को प्रच्छन्न रूप से अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया था। आज के दिन लाडनूं में आपका महाप्रयाण हो गया था। आज का दिन आचार्य भिक्षु से जुड़ा है, तो आचार्यश्री डालगणी एवं कालूगणी से भी जुड़ा है। दशमाधिशास्ता आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी ने भी आज के दिन अपने उत्तराधिकारी की घोषणा की थी, मुझको उन्होंने युवाचार्य पद प्रदान किया था। गंगाशहर के चैपड़ा स्कूल का वो मंच और मुझे बुलाया ‘आओ मुनि मुदित कुमार’ और अपना भावि दायित्व मुझे प्रदान किया था। मेरे लिए ही आज का दिन एक ऐतिहासिक दिन है।
एक युवा को अमल-धवल चद्दर ओढ़ाकर अपना हाथ मेरे शरीर पर रख दिया था। गुरुदेव तुलसी के महाप्रयाण के बाद आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी ने बहुत जल्दी अपने उत्तराधिकार अर्पण का कार्य कर दिया था। इतना विशाला हमारा धर्मसंघ है। हमारे धर्मसंघ की अपनी मर्यादाएँ-नियम हैं। हम धर्म में ज्यादा स्थित रहते हुए आत्म-कल्याण, सर्व दुःखमुक्ति की दिशा में प्रगति करते रहें। कल भाद्रवा शुक्ला त्रयोदशी भिक्षु चरमोत्सव का दिवस है। पूज्यप्रवर ने तपस्या के प्रत्याख्यान करवाए। रवि मालू ने स्वरचित गीत की प्रस्तुति दी। कुमुद कच्छारा ने महिला मंडल अधिवेशन की सूचना दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।