पर्वाधिराज पर्युषण का नवाह्निक आयोजन
छोटी खाटू।
साध्वी संघप्रभा जी के सान्निध्य में पर्वाधिराज पर्युषण का नवाह्निक कार्यक्रम केंद्र द्वारा निर्दिष्ट दिवसों के अनुसार अत्यंत उल्लासपूर्वक मनाया गया। साध्वीश्री जी ने पर्युषण के महत्त्व एवं इतिहास पर प्रकाश डालते हुए कहा कि बरसाती नदियों का तीव्र वेग जैसे वर्षों से जमे कूडे-कर्कट को अपने साथ बहाकर ले जाता है वैसे ही पर्युषण महापर्व पर धर्म और अध्यात्म की ऐसी बाढ़ आती है जो जन्म-जन्मांतरों के कल्मष को धो डालती है। कार्यक्रम में महिला मंडल की सदस्याओं के मंगलाचरण गीत से हुआ। जिसमें गुलाब देवी बैद, कुसुम देवी बैद, किरण धारीवाल की प्रस्तुति रही।
खाद्य संयम दिवस: पर्युषण के प्रथम दिन खाद्य संयम की उपयोगिता पर भोजन कब, क्यों, कैसे? इत्यादि बिंदुओं पर साध्वी प्राज्ञप्रभा जी ने विषय पर प्रस्तुति दी। साध्वी प्रांशुप्रभा जी ने कार्यक्रम का संचालन किया। साध्वी संघप्रभा जी ने कहा कि खाद्य संयम साधना का वह बुनियादी प्रयोग है जो साधक को तलहटी से शिखरारोहण करवा सकता है। भगवान महावीर के 27 भवों की पूर्व यात्रा का प्रारंभ करते हुए साध्वीश्री जी ने आगे कहा कि खाद्य विजय से कषाय विजय करके ही भगवान महावीर ने सिद्धि प्राप्त की थी।
स्वाध्याय दिवस: साध्वी प्रांशुप्रभा जी ने स्वाध्याय के अर्थ प्रकारों एवं स्वाध्याय से होने वाले लाभों की अपने वक्तव्य में विवेचना की। साध्वी संघप्रभा जी ने इस दिन चतुर्दशी होने के कारण हाजरी वाचन का उपक्रम संपन्न करते हुए विषय के संदर्भ में कहा कि स्वाध्याय दिल और दिमाग को ताजगी देने वाला एक ऐसा टाॅनिक है जो जीवन के आंगन को ज्ञान के प्रकाश से भर देता है।
सामायिक दिवस: साध्वी प्राज्ञप्रभा जी ने सामायिक को समता का महान अनुष्ठान बताते हुए पूणिया श्रावक का उदाहरण प्रस्तुत किया। साध्वी प्रांशुप्रभा जी ने उपस्थित श्रावक समाज को अभिनव सामायिक का प्रयोग करवाया। साध्वी संघप्रभा जी ने अपने उद्बोधन में सामायिक की आगमिक एवं वैज्ञानिक व्याख्या करते हुए श्रावक जीवन की अनमोल धरोहर बताया।
वाणी संयम दिवस: साध्वी प्रांशुप्रभा जी ने मौन की महत्ता पर कहा कि हर व्यक्ति को इष्ट, मिष्ट, शिष्ट एवं यथार्थ परीक्ष्य वाणी का प्रयोग करना चाहिए। साध्वी संघप्रभा जी ने अपने प्रवचन में वाणी की शक्ति एवं उसके सदुपयोग की आवश्यकता पर बल दिया। अणुव्रत चेतना दिवस: साध्वी प्राज्ञप्रभा जी ने गीत के माध्यम से अणुव्रत के भवसागर से तरने की नौका बताया। साध्वी संघप्रभा जी ने कहा कि व्रत का अर्थ हैµइच्छाओं के खुले आकाश को त्याग व संयम के शामियानों से बाँधना। साध्वीश्री जी ने श्रावक के 12 अणुव्रतों की विवेचना के साथ भगवान महावीर के क्रमशः अग्रिम छ परिव्राजक एवं छ देवता कुल 12 भवों की यात्रा का घटनाक्रम आगे बढ़ाया। जप दिवस: गीत के माध्यम से साध्वी प्रांशुप्रभा जी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। साध्वी संघप्रभा जी ने जप को भक्ति योग का विशिष्ट अंग बताते हुए नमस्कार मंत्र की विभिन्न विधियों एवं जप से होने वाले लाभों की आश्चर्यजनक अवगति दी।
ध्यान दिवस: साध्वी संघप्रभा जी ने अपने प्रवचन में कहा कि ध्यान आंतरिक शक्तियों के जागरण एवं तनावमुक्त जीवन जीने की अनूठी साधना है। भगवान महावीर की ध्यान साधना इसका अनुपम निदर्शन है। संवत्सरी महापर्व: प्रातः सवा आठ बजे से शाम लगभग सवा पाँच बजे तक करीब नौ घंटे तक चले इस कार्यक्रम का शुभारंभ साध्वीश्री जी ने नमस्कार महामंत्र एवं वीरत्थुई के मंगल उच्चारण से किया। साध्वी संघप्रभा जी ने गीत के संगान के पश्चात आगम प्रमाणानुसार संवत्सरी के महत्त्व, विधि-निषेधों की विस्तृत जानकारी दी। साध्वी प्राज्ञप्रभा जी ने सांवत्सरिक प्रवचन के प्रारंभिक दौर में उत्तराध्ययन सूत्र का वाचन, मध्याह्न में गणधरवाद एवं निह्नवाद पर प्रकाश डाला। साध्वी संघप्रभा जी ने पूर्वाहन में भगवान महावीर के 26वें भव प्राणत दसवें देवलोक से च्यवन एवं सत्ताइसवें महावीर के भव में जन्म से लेकर केवल ज्ञान तक साधना काल के भीषण उपसर्गों का रोमांचक चित्रण प्रस्तुत किया।
अंत में साध्वी संघप्रभा जी ने समवेत स्वर लहरी के साथ मंगलपाठ पूर्वक जयघोषों से कार्यक्रम संपन्न किया। साध्वीवृंद की प्रवचन शैली ने लोगों को घंटों तक बाँधे रखा। कार्यक्रम में उपस्थिति अच्छी रही। क्षमायाचना दिवस: दूसरे दिन मैत्री गीत से साध्वीश्री जी ने क्षमायाचना कार्यक्रम का प्रारंभ किया। इस अवसर पर सभा मंत्री विकास सेठिया, महिला मंडल मंत्री पूजा सेठिया, तेयुप अध्यक्ष विनीत भंडारी, किशोर मंडल संयोजक प्रदीप बैद, कन्या मंडल सह-संयोजिका रुचिका धारीवाल, कपूरचंद बैद आदि वक्ताओं ने विचार व्यक्त किए। साध्वी प्रांशुप्रभा जी ने कहा कि क्षमा का सिंचन मैत्री व प्रेम के फूलों को खिलाकर हर मन को सुवासित कर देता है। अंत में साध्वी संघप्रभा जी ने कहा कि आज
का दिन अतिक्रमण के प्रतिक्रमण, आत्मावलोकन, भूलों के परिमार्जन, मन की गाँठों को खोलने एवं क्षमा के बावने चंदन से वैर को प्रीत में बदलने का है। उपस्थित सभी श्रावक-श्राविकाओं ने पारस्परिक सामूहिक खमतखामणा की। कार्यक्रम का संचालन सभाध्यक्ष ताराचंद धारीवाल ने किया। सात दिन तक भाई-बहनों में नमस्कार महामंत्र का अखंड जप चला। आठ दिनों तक सायं प्रतिदिन सामुहिक प्रतिक्रमण कन्याओं, महिलाओं द्वारा करवाया गया। संवत्सरी के दिन ठिकाने में 49 पौषध हुए। सैकड़ों लोगों ने उपवास किए। प्रत्याख्यान आराधना पत्र भरे गए। सभा द्वारा तेरापंथ सभा भवन में सामुहिक पारणा करवाया गया। समग्र व्यवस्थाओं में मुकेश सेन का सहयोग रहा।