जीवन को अध्यात्म के अलंकारों से अलंकृत करें : आचार्यश्री महाश्रमण
नंदनवन, 9 अक्टूबर, 2023
धर्मोद्योतकर, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण जी ने भगवती आगम की अमृत वर्षा करते हुए फरमाया कि शास्त्र में तीन चीजें इस सूत्र में बताई गई हैंµशरीर चलना, इंद्रिय चलना और योग चलना। मनुष्य को शरीर प्राप्त है, यह स्थूल शरीर औदारिक शरीर है सूक्ष्म शरीर तेजस शरीर होता है और सूक्ष्मतर शरीर कार्मण शरीर होता है। कार्मण शरीर को कारण भी कहा गया है।
हमारे पास पाँच इंद्रियाँ हैं। मन, वचन, शरीर की प्रवृत्ति योग होता है। हमारे पास एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व-आत्मा है, जो हमारे जीवन का मूल तत्त्व है। आत्मा है, तो योग होता है। हमारे शरीर, इंद्रियों और योग में चंचलता होती है। चंचलता के साथ स्थिरता भी हो।
ध्यान की साधना में स्थिरता और शिथिलता भी आवश्यक होती है। योग साधना का अभ्यास करना चाहिए। किसका शरीर कितना सुंदर है, यह भी एक विषय है। सुंदरता ज्यादा न हो तो भी हमारा जीवन चल सकता है। संुदरता से ज्यादा शरीर की स्वस्थता और सक्षमता का ज्यादा महत्त्व है। साधु को शरीर की सुंदरता पर ध्यान नहीं देना चाहिए। साधु तो स्व-पर कल्याण करने वाला होता है, इसलिए उसका शरीर स्वस्थ और सक्षम हो। गृहस्थों के लिए शरीर, सुंदरता के साथ कपड़ों का महत्त्व भी है। पर इसे ज्यादा महत्त्व नहीं देना चाहिए। अलंकारों को भी ज्यादा महत्त्व नहीं देना चाहिए। बाहर के अलंकार तो भार है। आदमी गुणात्मक अलंकरणों को धारण करे। कान की शोभा ज्ञान की बात सुनने से है। बुरा देखो मत, बुरा बोलो मत, बुरा सुनो मत और बुरा सोचो मत। जीवन में सहजता-सादगी हो। ज्ञान, शिक्षा, कार्य कुशलता और सदाचार का जीवन में महत्त्व है।
हमें शरीर, इंद्रियाँ और योग प्राप्त है, इनका जीवन में सदुपयोग हो। हाथ की शोभा दान से, शरीर की शोभा सेवा से, परोपकारों से है। हम जीवन को अध्यात्म के अलंकारों से अलंकृत करें।अखिल भारतीय महिला मंडल का मंचीय कार्यक्रम पूज्यप्रवर ने निवर्तमान एवं नवनिर्वाचित अध्यक्षा को आशीर्वचन फरमाया। अभातेममं सशक्त संगठन है। इसकी अनेक गतिविधियाँ हैं। महिला मंडल का जगह-जगह सहयोग मिलता रहता है। तत्त्वज्ञान में भी विकास हो रहा है। इसके माध्यम से अनेक श्राविकाओं को विकास का अवसर मिलता है। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी इसे विशेष संभाल रही हैं। इनके माध्यम से मंडल के समाचार मिलते रहते हैं। मंडल की संघ के प्रति श्रद्धा-भक्ति भी विशेष है।
दिल्ली-मुंबई महिला मंडल ने गीत की प्रस्तुति दी। निवर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष नीलम सेठिया ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। लगभग 250 क्षेत्रों से 1100 बहनों की इस अधिवेशन में उपस्थिति रही। कार्यकाल की उपलब्धियों को बताया। कल साधारण सदन में नवनिर्वाचित राष्ट्रीय अध्यक्षा के पद पर सरिता डागा का मनोनयन हुआ। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि अभातेममं का 48वाँ अधिवेशन सौहार्दपूर्ण संपन्न हो रहा है। शाखा मंडल भी निर्देशों को सजगता से पालन कर रहे हैं। आचार्य तुलसी शिक्षा योजना, तत्त्वज्ञान, तत्त्व-दर्शन इनके महत्त्वपूर्ण आयाम हैं। तत्त्वज्ञान से जीवन में पापभीरूता और वैराग्य के भाव आ सकते हैं। मंडल के सदस्यों चारित्र शुद्धता, ईमानदारी और परस्पर संबंध अच्छे हों। इनसे टीम में यूनिटी बढ़ती है, कार्य अच्छा कर सकती है। एक-दूसरे के प्रति सम्मान का भाव है। सब एक-दूसरे को सहयोग दें। समय का भी विसर्जन पदाधिकारियों को मंडल के विकास के लिए करना होगा तभी मंडल ऊँचाइयों को छू सकेगा।
साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी ने कहा कि जीवन में धृति-धैर्य का महत्त्व होता है। धृति यानी मन को एक काम पर टिकाकर रखना। लक्ष्य को सफलता के साथ पाना है तो धैर्य रखना होगा। लक्ष्य पाने में असफलताएँ आ सकती हैं, पर धैर्य से आदमी कुछ हासिल कर सकता है। अधीरता रूपी दीमक समय रूपी जीवन को खा सकती है, समय का सदुपयोग हो। विपरीत स्थिति में भी समभाव रखें। पुरुषार्थ करने वाला ऊँचाइयों को प्राप्त कर सकता है। राष्ट्रीय महामंत्री मधु देरासरिया ने कार्यक्रम का संचालन किया। ‘श्राविका गौरव’ पुरस्कार-2023 भंवरीदेवी भंसाली को, सीतादेवी सरावगी पुरस्कार शुभा मेहता एवं जयश्री भूरा को प्रदान किया गया। शुभा मेहता, जयश्री जैन ने अपनी भावना अभिव्यक्त की।
अभातेममं की नवनिर्वाचित अध्यक्षा सरिता डागा को निवर्तमान अध्यक्षा नीलम सेठिया ने शपथ ग्रहण करवाई। नवनिर्वाचित अध्यक्षा ने अपने वक्तव्य में भावी योजनाओं के बारे में जानकारी दी। अपनी कार्यकारिणी व पदाधिकारियों की घोषणा करते हुए अपनी टीम को शपथ दिलवाई। पूज्यप्रवर ने नई टीम को आशीर्वचन फरमाते हुए अभातेममं और विकास करता रहे, ऐसी प्रेरणा प्रदान करवाई। चैनराज भंसाली ने भी अपनी माताजी की ओर से भावना अभिव्यक्त की। सुमित्रा देवी बड़ाला ने 28 एवं सलोनी डागलिया ने 28 की तपस्या के प्रत्याख्यान पूज्यप्रवर से ग्रहण किए।कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।