अहिंसा दिवस की जड़ें हमारे भीतर में : आचार्यश्री महाश्रमण
गुरुदेव तुलसी के सान्निध्य में आचार्यश्री महाप्रज्ञ द्वारा प्रदत्त एक अवदान-प्रेक्षाध्यान
नंदनवन, 10 अक्टूबर, 2023
प्रेक्षा अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण के सान्निध्य में प्रेक्षा फाउंडेशन, प्रेक्षा इंटरनेशनल अध्यात्म साधना केंद्र व प्रेक्षा विश्व भारती द्वारा संयुक्त प्रेक्षा अधिवेशन शुरू हो रहा है। प्रेक्षाध्यान के प्रयोग से हम स्वयं सत्य की खोज कर सकते हैं। वर्तमान में जी सकते हैं। ध्यान, योग के महान साधक, परम पावन आचार्यश्री महाश्रमण जी ने आर्षवाणी का रसास्वाद कराते हुए फरमाया कि भगवती सूत्र में भगवान महावीर के साथ जो संवाद प्राप्त हुए हैं, उनका वर्णन प्राप्त होता है। अनेकों ने प्रश्न पूछे हैं, पर सबसे ज्यादा प्रश्नकर्ता तो भगवान गौतम स्वामी थे। वे भगवान के निकट रहने वाले और कृपा पात्र थे। जब उनका मन हुआ भगवान से प्रश्न पूछ लेते, तो भगवान उनका उत्तर भी दे देते।
श्राविका जयंती एवं अन्य तीर्थिकों ने भी प्रश्न पूछे हैं। गौतम ने प्रश्न पूछा-भंते! क्या जीवों के प्राणातिपात क्रिया होती है? उत्तर दिया गया-हाँ जीव प्राणातिपात-हिंसा भीतर लेते हैं। हिंसा-अहिंसा का सूक्ष्म विवेचन हो जाता है, यहाँ भाव की प्रधानता होती है। बाहर हिंसा नहीं होती है, पर भावों में हिंसा है, तो पाप कर्म का बंध हो सकता है। हम भीतर को देखने, जानने और रहने का प्रयास करें। भीतर में रहने का प्रयास ध्यान है। ध्यान के प्रारंभ में प्रणाली-पद्धति बहुत उपयोगी होती है। गहराई में पहुँचने पर फिर ध्यान में प्रणाली की अपेक्षा नहीं रहती है। ध्यान भीतर की चीज है। वृत्ति भीतर में है तो फिर प्रवृत्ति सामने आती है। चित्त की निर्मलता, स्थिरता, समता-अहिंसा कितनी परिणित हुई है। हमारे में राग-द्वेष के भाव न रहें। ध्यान इतना सध जाए कि हर प्रवृत्ति में ध्यान रहे।
प्रेक्षाध्यान आगम सम्मत है। इसमें अपने आपको देखने की बात है। प्रेक्षाध्यान अध्यात्म की ध्यान योग की एक स्कूल है। ध्यान से पद्धति की पहचान है। आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी ध्यान के अनेक प्रयोग कराया करते थे। वर्तमान में प्रेक्षाध्यान पद्धति प्रवर्धमान है। अहिंसा-हिंसा की जड़ें भीतर में रहती हैं। कार्मण शरीर हिंसा की जड़ है। ध्यान, समता, अहिंसा-इनमें अभिन्नता दिखाई देती है। ये एक रूप में त्रिवेणी है। तीनों अलग-अलग भी दिख सकते हैं। जैसे एक हाथ में पाँच अंगुलियाँ होती हैं। हिंसा बाहर भी होती है, तो भीतर भी होती है। पाप कर्म का बंध भीतर से है, बाहर से पाप कर्म का बंध नहीं होता। ये सब जीव की परिणाम धारा पर निर्भर करता है। निर्जरा और संवर आध्यात्मिक चीज है, तो पुण्य-पाप भौतिक चीज है। हम हिंसा से बचकर अहिंसा के मार्ग पर चलने का प्रयास करें। अशोक चिंडालिया ने प्रेक्षा फाउंडेशन की प्रवृत्तियों की जानकारी दी। प्रेक्षा फाउंडेशन की ओर से अरविंद संचेती ने रिपोर्ट प्रस्तुत की। अध्यात्म साधना केंद्र से के0सी0 जैन ने विचार रखे। प्रेक्षाध्यान के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि कुमार श्रमण जी ने भी प्रेक्षाध्यान की संस्थाओं की प्रगति की जानकारी दी।
पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाया कि प्रेक्षाध्यान से संबंधित सम्मेलन हो रहा है। जैन विश्व भारती प्रेक्षाध्यान का आधारभूत संस्थान रहा है। अणुव्रत न्यास के अंतर्गत अध्यात्म साधना केंद्र भी लंबे काल से ध्यान के विस्तार में लगी है। प्रेक्षा विश्व भारती में अनेक शिविर लगते रहते हैं। प्रेक्षा इंटरनेशनल भी अपनी गति से कार्य कर रही है। अगले वर्ष प्रेक्षाध्यान का 50वाँ वर्ष स्वर्ण जयंती वर्ष के रूप में एक वर्ष तक आयोजन होने वाला है। साधना के साथ इसका आयोजन हो। 2026-27 में योगक्षेम वर्ष लाडनूं में होने जा रहा है। उस समय प्रेक्षाध्यान साधना का विशेष आयोजन हो। हमारा भी उस समय लंबा प्रवास रहेगा। क्षेत्र अनुसार भी शिविर आयोजित किया जा सकता है। संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।