विश्व शांति के लिए अणुव्रत और सदाचार का होना आवश्यक : आचार्यश्री महाश्रमण
नंदनवन, 3 अक्टूबर, 2023
अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के तीसरे दिवस पर अणुव्रत यात्रा प्रवर्तक आचार्यश्री महाश्रमण जी ने फरमाया कि शास्त्र में कहा गया है कि श्रेष्ठ यह है कि मैं स्वयं अपनी आत्मा का दमन करूँ, संयम करूँ, अनुशासन करूँ। अगर ऐसा नहीं हुआ तो दूसरों के द्वारा नियंत्रण में लाया जाऊँगा। अपने से अपना अनुशासन ही अणुव्रत की परिभाषा है। अणुव्रतों को स्वेच्छा से स्वीकार किया गया है, तो अपने से अपना अनुशासन हो जाता है। धर्म का थोड़ा-सा अंश भी भय से मुक्ति दिलाने वाला होता है। धर्म का थोड़ा अंश अणुव्रत में है। अणुव्रत के व्रतों को कोई भी व्यक्ति स्वीकार कर अच्छा जीवन जी सकता है, अणुव्रती बन सकता है। वह आदमी किसी भी वर्ग का हो सकता है। अणुव्रत में धर्म-संप्रदाय के महत्त्व की बात नहीं है।
अणुव्रत व्यापक है, इसकी सीमा संकीर्ण नहीं है। देवों के बीच भी कोई अणुव्रत की बात कर सके, कारण वहाँ पर भी विवाद हो सकता है। अणुव्रती आत्माएँ जो देवलोक में गई हैं, वे वहाँ अणुव्रत के प्रसार की बात कर सकती हैं। अणुव्रत की बात विभिन्न कार्यक्रमों में करी जा सकती है। अणुव्रत जीवन में आए। तभी जीवन में परिवर्तन आ सकता है। दुनिया में अच्छे भले आदमी भी बहुत हैं। तारतम्य हो सकता है। आदमियों में कमियाँ मिल सकती हैं। अणुव्रत असद् से सद्, अंधकार से प्रकाश और मृत्य से अमृत्य की ओर प्रस्थान है। अणुव्रत आदमी को बुराई से रोकने वाला संकल्प है। लिया हुआ संकल्प आदमी का सुरक्षा कवच, लक्ष्मण रेखा है।
अणुव्रत के साथ प्रेक्षाध्यान की साधना चलती है, तो जीवन में और अच्छी भावनात्मक विशुद्धि संपुष्ट हो सकती है। जीवन विज्ञान भी इन दोनों से जुड़ा दिवस है। जीवनशैली अणुव्रतों वाली बन जाए। जीवन सुखी रह सकता है। इहलोक और परलोक अच्छा रह सकता है। सादा जीवन, उच्च विचार। मानव जीवन का शृंगार। सादगीपूर्ण जीवन हो। जीवन चलाने के लिए रोटी, कपड़ा, मकान और शिक्षा व चिकित्सा चाहिए। कम संसाधनों से काम चल सकता है। अनैतिकता से अर्थार्जन का प्रयास न हो। पैसा है तो उसका दुरुपयोग न हो। साधनों के लिए साधन शुद्ध हो। जन-जन के मन में अणुव्रत-सदाचार का विचार हो तो विश्व भी अच्छा हो सकता है।
साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी ने कहा कि आदमी को एक दिशा ही पकड़नी चाहिए ताकि सही लक्ष्य मिल सकता है। मानव जीवन कीमती है। हमें बड़ा लक्ष्य बनाना चाहिए। लक्ष्य ऐसा होना चाहिए जो जीवन को सुलझाने वाला, आगे बढ़ाने वाला और भावी जीवन भी अच्छा बनाने वाला हो। व्यवहार के धरातल पर हमारा लक्ष्य हो कि मैं अच्छा इंसान बनूँ। जीवन में मानवीयता, ईमानदारी और विनम्रता का भाव हो।
पूज्यप्रवर ने तपस्या के प्रत्याख्यान करवाए भवरलाल कर्णावट फाउंडेशन द्वारा बोधि सम्मान पुरस्कार-2021 डाॅ0 जतनलाल डागा एवं 2022 का बोधि सम्मान भी पारसमल दुगड़ को प्रदान किया गया। लक्ष्मणसिंह कर्णावट, डाॅ0 जतनलाल डागा, पारसमल दुगड़ ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाया।