पूर्ण विकास के लिए ज्ञान के साथ संस्कार आवश्यक : आचार्यश्री महाश्रमण
समणी रूपी शिष्या की अर्जी स्वीकार कर प्रदान की साध्वी दीक्षा
नंदनवन, 5 अक्टूबर, 2023
तेरापंथ धर्मसंघ के देदीप्यमान महासूर्य आचार्य महाश्रमण जी ने गुरुवार को अपनी समणी रूपी शिष्या समणी पावनप्रज्ञा की अर्जी पर महती कृपा बरसाते हुए मुख्य प्रवचन में साध्वी दीक्षा प्रदान की। प्रातःकाल में परम पावन ने परम कृपा करते हुए समणी पावनप्रज्ञा जी की श्रेणी आरोहण कराने की स्वीकृति प्रदान करवाई। समणी अक्षयप्रज्ञा जी ने समणी पावनप्रज्ञा जी का परिचय दिया। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी, साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी एवं मुख्य मुनि महावीर कुमार जी ने समणी जी के प्रति मंगलभावना अभिव्यक्त की।
संयम प्रदाता आचार्यश्री ने श्रेणी आरोहण कराते हुए जिन वाणी का स्मरण करते हुए आचार्य भिक्षु एवं पूर्वाचार्यों की स्मृति करते हुए नमस्कार महामंत्र के उच्चारण के साथ सामायिक चारित्र समणी पावनप्रज्ञा जी को ग्रहण करवाया। नवदीक्षित साध्वीश्री ने पूज्यप्रवर को वंदना की। पूज्यप्रवर ने अतीत की आलोचना करवाई। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने केश लोचन किया एवं रजोहरण (प्रमार्जनी) प्रदान करवाया गया। नामकरण संस्कार कराते हुए पूज्यप्रवर ने नवदीक्षित साध्वीश्रीजी का नाम साध्वी पावनप्रज्ञा रखा।
अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने करोड़ों लोगों को नशामुक्ति का संकल्प वर्तमान के करवाया है और सतत प्रयास चालू है। कहा गया है कि नशा नाश का मूल है। अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के पाँचवें दिन नशामुक्ति दिवस पर नशामुक्ति अभियान के प्रदाता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने फरमाया कि आदमी का जीवन अच्छे व्रतों के साथ जुड़ जाता है, जीवन संयमित बन जाता है। जिस जीवन में संकल्प हो जाता है, वह जीवन अच्छा बन जाता है।
जीवन का पहला भाग किशोरावस्था का है। विद्यार्थी विद्यालय में ज्ञान अर्जन करते हैं। जीवन में अच्छाई आ सकती है। आदमी सुशिक्षित बन जाता है। शिक्षा के साथ अच्छे संस्कारों का भी वपन हो। ज्ञान आधा विकास है, साथ में अच्छे संस्कार हैं, तो विद्यार्थी का पूर्ण विकास हो सकता है। विद्यार्थी कुसंस्कारों से बचे।
नशा भी एक ऐसी आदत हो जाती है कि आदमी उसके बिना रह नहीं सकता है। जो चीजें नुकसानदेह हैं धर्म की दृष्टि से स्वास्थ्य और विकास की दृष्टि से ऐसी चीजों से आदमी बचने का प्रयास करे। ईमानदारी सर्वोत्तम नेकी है, यह जीवन में आ जाए तो जीवन में सुंदरता आ सकती है।
जीवन में अहिंसा की भावना भी हो। ज्यादा गुस्सा न हो। जो नशा दुर्दशा करने वाला है, उसका त्याग कर दिया जाए तो आर्थिक लाभ भी हो सकता है। बचपन से ही संकल्प हो जाए कि नशा नहीं करना है। युवा-किशोर आज कितने ड्रग्स, शराब आदि के सेवन में लिप्त हैं और कठिनाई भी अनुभव करते होंगे। अणुव्रत का संदेश-जीवन में नशा न हो यह व्यक्ति की रग-रग में समा जाए, संकल्पित हो जाएँ तो जीवन अच्छा हो सकता है।
यह मानव जीवन बड़ा महत्त्वपूर्ण है, दुर्लभ माना गया है। विद्यार्थियों को तीन प्रतिज्ञाओं को सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति को समझाकर संकल्प स्वीकार करवाएँ। नशामुक्ति का संदेश व्यक्ति के जीवन में, आत्मा में प्रवेश करे। विद्यार्थियों को चारों ओर से अच्छे संस्कार मिलें, ऐसा अभिभावकों, शिक्षकों को प्रयास करना चाहिए।
पूज्यप्रवर की सन्निधि में अनेक शिक्षण संस्थानों के विद्यार्थी पहुँचे हैं। अनीश ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। प्रो0 मिराज ने भी अपनी भावना अभिव्यक्त की। पूज्यप्रवर ने तपस्या के प्रत्याख्यान करवाए।
मुनि अभिजीत कुमार जी ने स्कूल के बच्चों को प्रेरण प्रदान करवाई। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।