प्राणियों को जीवन जीने में जीव-अजीव का भी सहयोग मिलता है : आचार्यश्री महाश्रमण
नंदनवन, 4 अक्टूबर, 2023
अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के चैथे दिवस पर्यावरण विशुद्धि दिवस पर अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने फरमाया कि हमारी सृष्टि में जीव जगत भी है और अजीव जगत भी है। हमारी ये दुनिया जीव या अजीव के सिवाय कुछ नहीं है। प्राणी जीव जीते हैं। प्राणियों को जीवन जीने में जीव-अजीव का भी सहयोग मिलता है। छः द्रव्यों का हमें हर पल सहयोग मिलता रहता है। प्रथम पाँच द्रव्य तो दूसरों को सहयोग देते हैं, पर जीव शेष पाँच द्रव्यों को सहयोग नहीं देता। जीवों का परस्पर अवलावन उपकार होता है। ‘परस्परोपयोग जीवानाम्’। जीव जीव को ही सहयोग देता है। धरती पर तीन रत्न हैं-जल, अन्न और सुभाषितम्।
आज अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का चैथा दिवस पर्यावरण विशुद्धि दिवस है। डाॅ0 मुख्य मुनि महावीर कुमार जी का तो चिंतन रहा है-जैन आगम में पर्यावरण। अहिंसा, संयम और तप की बात आत्मशुद्धि के साथ पर्यावरण शुद्धि भी हो सकती है। दुनिया में मूल तत्त्व के रूप में पदार्थ तो उतने के ही उतने हैं। वैसे भी जीव भी जितने थे हैं, उतने ही हैं। उपभोक्ता जीवों की संख्या मोक्ष के संदर्भ में घटती है। संसारी जीवों की संख्या घटती रहती है तो फिर अव्यवहार राशि से जीव घटकर व्यवहार राशि में आते रहते हैं।
पेड़ों की सुरक्षा हो। पानी का अपव्यय न करें। इससे हिंसा से बचाव और पदार्थ का संयम हो सकता है। शास्त्र में वनस्पति और मनुष्य की तुलना की बात आती है। हरियाली का भी गृहस्थ अनावश्यक उपयोग न करें। पाँच स्थावर काय के जीव जो भौतिक भूत रूप में है, इन्हें जैन दर्शन में संजीव माना गया है, पर्यावरण के संदर्भ में भी इनकी अनावश्यक हिंसा न हो। पर्यावरण को दूषित करने से बचें।