संयम की चेतना का पर्व - महापर्व पर्युषण

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संयम की चेतना का पर्व - महापर्व पर्युषण

सुनाम।
साध्वी कनकरेखाजी के सान्निध्य में पर्युषण महापर्व की आराधना का शुभारंभ हुआ। सात दिवसीय अखंड जप अनुष्ठान की शुरुआत 11 जोड़े के सहित हुई। साध्वी कनकरेखा जी ने कहा कि संयम की आराधना का महापर्व हैµपर्युषण। पर्युषण पर्व हम सबके भीतर धर्म का दीप प्रज्वलित करने की प्रेरणा लेकर आता है। उसकी रोशनी से मन-मंदिर को पवित्र बनाया जाता है। भोग से त्याग की ओर, असंयम से संयम की ओर, राग से विराग की ओर प्रस्थान करने के लिए पर्युषण महापर्व की आराधना की जाती है।
खाद्य संयम दिवस: युवती मंडल से लीना, प्रिया व पायल ने सुमधुर स्वर लहरी से मंगलाचरण किया। साध्वी कनकरेखा जी ने कहा कि खाद्य संयम के साथ विशेष रूप से इंद्रिय मन पर संयम करें। हित-मित-सात्त्विक आहार का सेवन करने से हमारी विचार, व्यवहार व आचार भी सात्त्विक बनते हैं। साध्वी केवलप्रभा जी ने अपने विचार रखे।
स्वाध्याय दिवस: साध्वी कनकरेखा जी ने कहा कि आत्म-दर्शन का दर्पण हैµस्वाध्याय। स्वाध्याय आत्मा पर जमी हुई कालिमा को दूर कर आत्मा को पवित्र बनाया जा सकता है। लब्धियों, सिद्धियों के साथ स्वाध्याय, आत्मविद्या का ज्ञान करवाता है। साध्वीवृंद ने साध्वीश्री जी द्वारा रचित गीत का संगान किया।
सामायिक दिवस: अभिनव सामायिक की शुरुआत त्रिपदी वंदना के साथ हुई। साध्वी केवलप्रभा जी ने क्रमबद्ध सामायिक अनुष्ठान का प्रयोग करवाया। साध्वी कनकरेखा जी ने कहा कि सामायिक का अर्थ हैµसमता का अभ्यास। असंतुलित जीवनशैली को संतुलित बनाने का सुंदर उपकरण हैµसामायिक। साध्वीवृंद ने सुमधुर स्वर लहरी से वातावरण को संगीतमय बना दिया। लगभग 83 सामायिक हुई।
मौन दिवस: तीर्थंकर स्तुति के साथ साध्वी गुणप्रेक्षाजी, साध्वी केवलप्रभा जी, साध्वी हेमंतप्रभाजी ने कार्यक्रम का आरंभ किया। भगवान महावीर की सरस भव-परंपरा की रोचक प्रस्तुति देते हुए साध्वी कनकरेखा जी ने कहा कि सामाजिक संबंधों का आईना है वाणी, इसमें बहुत बड़ी शक्ति है इसलिए अनावश्यक न बोलें, हितकारी, प्रिय व मधुर बोलें। साध्वी संवरविभा जी ने अपने विचार रखे। पायल जैन ने संचालन किया। महिला मंडल से मंजु भावना और रेनू ने मौन दिवस पर गीत का संगान किया। रात्रि में महावीर अंत्याक्षरी कार्यक्रम हुआ।
अणुव्रत चेतना दिवस: साध्वी कनकरेखा जी ने कहा कि गुरुदेव तुलसी ने अणुव्रत आंदोलन का सूत्रपात कर मानव को मानवता की राह दिखाई। मानवीय मूल्यों की प्रतिष्ठा कर राष्ट्रीय चरित्र के ग्राफ को ऊँचा उठाने में प्रयास किया। महिला मंडल अध्यक्ष सुनीता और साथ में भावना पुष्पा जैन ने अणुव्रत गीत का संगान किया। साध्वी संवरविभा जी ने संचालन किया।
जप दिवस: महावीर स्तुति के साथ कार्यक्रम प्रारंभ हुआ। साध्वी कनकरेखा जी ने कहा कि शक्ति जागरण का विशिष्ट प्रयोग हैµजप। साधक जप की साधना से सुरक्षा कवच का निर्माण करता है। कन्या मंडल ने गीत का संगान किया। उपासिका सोना जैन ने अक्षर जप की व्याख्या की। संचालन मंत्री प्रिया जैन ने किया।
ध्यान दिवस: साध्वी कनकरेखा जी ने कहा कि बाह्य यात्रा से हटकर अंतर्यात्रा करने का नाम हैµध्यान। आज आम आदमी टेंशन से भरा हुआ है, इससे निजात पाने के लिए गुरुदेव तुलसी और आचार्य महाप्रज्ञ जी ने प्रेक्षाध्यान का आयाम देकर संपूर्ण मानव जाति को जीने की कला सिखाई। अगले चरण में एकासन, मासखमण मनसा जैन व पर्युषण में एकासन करने वालों की तप अनुमोदना की गई। साध्वीवृंद ने गीत का संगान किया।
संवत्सरी महापर्व: साध्वी कनकरेखा जी ने कहा कि अध्यात्म की चेतना को जगाने वाला यह महापर्व संवत्सरी का पावन दिन आया है। साध्वीश्री जी ने संवत्सरी महापर्व को मनाने की परंपरा का विस्तार से वर्णन किया। साध्वीवंृद ने गीतिका का संगान किया। इससे पूर्व साध्वी गुणप्रेक्षाजी ने आर्षवाणी का श्रवण करवाया। पर्युषण काल में नमस्कार महामंत्र का अखंड जाप, सामायिक, मौन पचरंगी, व्रत-अनुष्ठान, पौषध व्रत की आराधना में 45 भाई-बहनों की सहभागिता रही। सायंकालीन प्रतिक्रमण में श्रद्धालुओं की सराहनीय उपस्थिति रही।
मैत्री दिवस: साध्वीश्री जी ने मैत्री पर्व पर सबको आह्वान करते मैत्री, प्रेम और करुणा भाव से पारस्परिक व्यवहार करने के लिए प्रेरित किया। राग-द्वेष की ग्रंथि का भेदन कर आपस में क्षमायाचना करें। क्षमायाचना केवल वाचिक ही न रहे। कार्यक्रम की सफलता में सभा परिषद व महिला मंडल सभी का सहयोग रहा।