संयम को सिंचन करने वाला अमृत है स्वाध्याय : आचार्यश्री महाश्रमण
भीलवाड़ा, 5 सितंबर, 2021
पर्युषण पर्व का दूसरा दिनस्वाध्याय दिवस। तीर्थंकर के प्रतिनिधि, स्वाध्याय प्रेरणा प्रदाता परम पावन आचार्यश्री महाश्रमण जी ने भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा के बारे में फरमाया कि हम मनुष्य क्षेत्र अढ़ाई द्वीप में हैं। अढ़ाई द्वीप में भी यह मध्यवर्ती जम्बूद्वीप।
इसी जम्बूद्वीप के महाविदेह क्षेत्र में महाव्रत विजय की नगरी, जिसका नाम थाजयंति। वहाँ का राजा शत्रु मर्दन था, उसके राज्य में पृथ्वी प्रतिष्ठान का एक गाँव था, उसके एक अधिकारी का नाम थानयसार। पूज्यप्रवर ने भगवान महावीर के प्रथम भव नयसार के बारे में विस्तार से समझाया।
एक चक्र से रथ नहीं चलता, अनेक चक्रों से रथ चलता है। राजा सचिवों की नियुक्ति कर राज्य का संचालन करता
है। राजा के चार आँखें होती हैं। वह गुप्तचरों की आँखों से देखता है। आदमी फ्री में न खाएँ। दूसरों से सेवा लेते हैं तो दूसरों को सेवा देने का भी प्रयास करें। आदमी सेवा से मेवा ले। निर्जरा की भावना साधु में रहे।
साधु को दान देने की भावना श्रावक रखें। ‘मैं सदा आराम जीवी, साधु अहिंसा शूर हैधन्य वह दिन मुनिप्रवर को ये समर्पित करूँ।’ साधु की साधना में श्रावक सर्विभावी बने। संतों को रास्ता बताया तो संत भी रास्ता बता सकते हैं। दूसरों को सिखाना, ज्ञान देना अच्छी बात है। वंदना करनी भी अच्छी चीज है। सम्यक्त्व की प्राप्ति होना बहुत बड़ी सफलता है, अनंतकाल की यात्रा की।
सम्यक्त्व के समान कोई रत्न नहीं है, दूसरा मित्र या बंधु नहीं है और सम्यक्त्व के समान दूसरा कोई लाभ नहीं है। सम्यक्त्व के बाद चारित्र अमूल्य रत्न है। चारित्र को भी सम्यक्त्व का आधार चाहिए। चारित्र को सम्यक्त्व की गरज है, सम्यक्त्व को चारित्र की गरज नहीं है। चारित्र परावलंबी है।
पर्युषण पर्व के अंतर्गत आज स्वाध्याय दिवस है। स्वाध्याय एक ऐसा तत्त्व है, जो संयम को सींचन देने वाला अमृत-जल है। स्वाध्याय करते-करते अच्छी जानकारियाँ मिल सकती हैं। 27 दिन से लेकर 31 दिन की तपस्या को मासखमण की संज्ञा से अभिनीत करना चाहिए। ये बात कालू यशोविलास में आई हुई है। शिष्य गुरु का अनुगमन करे, यह विनय धर्म है।
छोटे-छोटे संत हमारे धर्मसंघ की नई पौध है। साध्वियाँ भी हैं, इनका ज्यादा से ज्यादा समय ज्ञानार्जन में नियोजित हो। वे लक्ष्य के साथ स्वाध्याय करे। इनका अच्छा विकास हो। छोटे-छोटे साधु-साध्वियों से स्वाध्याय-चितारने के बारे में जानकारी ली। ज्ञानाराधना के कई पाठ्यक्रम चलते हैं। हमारा ज्ञान बढ़े, वो हमारे चारित्र को सींचन देने वाला भी बनता रहे, यह काम्य है। स्वाध्याय दिवस के अवसर पर आचार्यप्रवर ने स्वाध्याय की महत्ता बताते हुए बाल मुनियों-साध्वियों से स्वाध्याय और अध्ययन का लेखा-जोखा लिया एवं सभी को निरंतर स्वाध्याय की प्रेरणा दी।
इस अवसर पर मुख्य मुनि महावीर कुमार जी, साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभा जी, मुख्य नियोजिका साध्वी विश्रुतविभा जी का सारगर्भित वक्तव्य हुआ। साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी ने स्वाध्याय दिवस के उपलक्ष्य में गीत का संगान किया।
मुनि पारस कुमार जी द्वारा तपस्या में नव कीर्तिमान - आचार्यप्रवर के पावन सान्निध्य में मुनि पारसकुमार जी ने 48 की तपस्या का प्रत्याख्यान करते हुए धर्मसंघ में नव कीर्तिमान बनाया। मुनिश्री इससे पूर्व भी अनेक प्रकार के विभिन्न तप संपन्न कर चुके हैं जिनमें 1 से 47 तक की लड़ी दो बार धर्मचक्र, 51, 54 दिन की तपस्या प्रमुख है। संतों में इस प्रकार की तपस्या करने वाले मुनि पारस कुमार जी एकमात्र संत हैं। आचार्यप्रवर ने आशीर्वाद प्रदान करते हुए मुनिवर को अग्रगणी की वंदना करवाई।
कार्यक्रम में मुनि मुकुल कुमार जी, साध्वी तेजस्वीप्रभा जी ने अपनी प्रस्तुति दी। बड़ोदा कबीर आश्रम से समागत साध्वी सुबुद्धि साहेब ने अपने विचार
व्यक्त किए। संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।