व्यवहार, मन और वाणी में भी हों अहिंसा के भाव : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

व्यवहार, मन और वाणी में भी हों अहिंसा के भाव : आचार्यश्री महाश्रमण

नंदनवन, 16 अक्टूबर, 2023
महामनीषी आचार्यश्री महाश्रमण जी ने अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि भगवती सूत्र में एक प्रश्न किया गया कि कोई भावितात्मा अणगार दोनों और युगमागशरीर प्रमाण भूमि की पृच्छा कर चल रहा है, उस साधु के पैर के नीचे कोई मुर्गी का बच्चा आ जाए, मर जाए, उस साधु को ऐर्यापथिकि क्रिया लगती है या सांप्रायिकी क्रिया लगती है। वीतराग के जो क्रिया होती है, वो ऐर्यापथिकि होती है। यह नाम मात्र की क्रिया होती है। कर्म लगा, भोगा और झड़ा। उस भावितात्मा अणगार के ऐर्यापथिकी क्रिया का बंध होता है। पुण्य का बंध होता है, पाप का तो सवाल ही नहीं। प्रश्न हो सकता है कि एक तरफ हिंसा हो रही है और एक तरफ पुण्य का बंध हो रहा है।
होना और करना दो चीज होती हैं। मुर्गी के बच्चे की हिंसा हुई है यह की नहीं गई है। तत्त्वज्ञान की गहराई से होने और करने में भेद करें तो बात अच्छी तरह समझ में आ सकती है। साधु संयमयुक्त गतिक्रिया कर रहा है। होने से पाप कर्म का बंध नहीं करने से पाप कर्म का बंध हो सकता है। मुर्गी के बच्चे के मरने से पुण्य का बंध नहीं हुआ है, पुण्य साधु के शुभ योग से बंधा है। बच्चा नहीं मरता तो भी पुण्य का बंध होता। प्रासंगिक घटना हो गई है। साधु की करने का इरादा नहीं था।
सांप्रायिकी क्रिया दसवें गुणस्थान तक होती है। ऐर्यापथिकि क्रिया का बंध 11, 12, 13वें गुणस्थान में होता है। इससे हिंसा के चार भंग हो जाते हैं। यहाँ द्रव्यतः हिंसा है, भावतः हिंसा नहीं है। कर्म का बंध भावतः हिंसा से होता है। दूसरा भंग हैµभावतः हिंसा है, द्रव्यतः हिंसा नहीं है। तीसरा भंगµद्रव्यतः हिंसा भी है और भावतः हिंसा भी है। चैथा भंग हैµन द्रव्यतः हिंसा न भावतः हिंसा है।
गृहस्थ भी हिंसा-अहिंसा के चिंतन में ध्यान रखें कि हिंसा करने का प्रयास न हो और हिंसा से बचने का भी प्रयास होना चाहिए। अपने व्यवहार, मन और वाणी से अहिंसा का भाव हो। राग-द्वेष का भाव न हो। प्रमाद न हो, जागरूकता रहे। साधु भी खुले मुँह नहीं बोले। आहार करते समय मुँहपट्टी खोलने के बाद न बोले।

दिवंगत साध्वी पावनप्रज्ञा जी की स्मृति सभा
पूज्यप्रवर ने साध्वी पावनप्रज्ञा जी के परिचय का वाचन किया। उनकी तपस्या व जन में रुचि थी। समणी अक्षयप्रज्ञा जी उनकी बहन थी और भी संसारपक्षीय साध्वियाँ-समणियाँ हैं। संथारा में जाना अच्छी बात होती है। मध्यस्थ-मंगलभावना स्वरूप चार लोगस्स का ध्यान करवाया। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी, साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी एवं मुख्य मुनि महावीर कुमार जी ने भी अपनी मंगलभावना अभिव्यक्त की। समणी अक्षयप्रज्ञा जी, समणी प्रणवप्रज्ञा जी एवं संसारपक्षीय पालगोता परिवार व अखतरा चैपड़ा परिवार ने भी उनके प्रति आध्यात्मिक मंगलकामना अभिव्यक्त की। पूज्यप्रवर ने तपस्या के प्रत्याख्यान करवाए। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।