नवरात्रा में आध्यात्मिक अनुष्ठान से करें शक्ति का संचय : आचार्यश्री महाश्रमण
नंदनवन, 17 अक्टूबर, 2023
तेरापंथ के एकादशम अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने आध्यात्मिक शक्ति संपन्न बनाते हुए आध्यात्मिक अनुष्ठान करवाया। भगवती सूत्र की विवेचना करते हुए परम पावन ने फरमाया कि वाणिज्य ग्राम में सौमिल नाम का प्रभावशाली व बौद्धिक परंपरा का जानकार भी था। एक बार भगवान महावीर का भी वाणिज्य ग्राम पदार्पण हो गया। सौमिल ब्राह्मण ने जब यह सुना तो उसके मन में भी आया कि मैं भगवान महावीर से मिलकर अपनी जिज्ञासाएँ उनसे पूछूँ। वो तो ज्ञानी आदमी हैं। पर मैं ऐसी बातें रखूँगा कि महावीर जी को निरूत्तर कर दूँगा। वह भगवान के पास आया। अनेक प्रयोजनों से आदमी धर्माचार्य के पास आ सकता है।
सौमिल ने भगवान से अनेक प्रश्न पूछे हैं, उनमें से कुछ प्रश्न यह पूछे हैं कि भंते! आपके यात्रा मान्य है क्या? आपको यमनीय मान्य है क्या? तुम्हें अव्यावाध मान्य है क्या? तुम्हें प्रासुक विहार मान्य है? भगवान ने उत्तर दिया-हाँ सौमिल! मुझे यात्रा मान्य है। यमनीय और अव्यावाध भी मान्य है और प्रासुक विहार भी मान्य है। सौमिल ने पूछा-आपके यात्रा क्या होती है? यात्रा दो प्रकार की हो सकती है-विहार यात्रा जिससे लोगों की आत्मा का व स्व का कल्याण कर सकता है। एक अध्यात्म की यात्रा होती है वह है-तप, नियम, संयम, स्वाध्याय, ध्यान, आवश्यक आदि योगों के साथ जो भगवान की प्रयत्नशीलता है, प्रयास होता है, यत्ना जो है, वो भगवान की यात्रा है। एक बहिर्यात्रा है, तो दूसरी अंतर्यात्रा है।
प्रेक्षाध्यान का दूसरा चरण है-अंतर्यात्रा। शक्ति केंद्र से ज्ञान केंद्र और ज्ञान केंद्र से शक्ति केंद्र की सुष्मना नाड़ी द्वारा चित्त की यात्रा। संयम जीवन की यात्रा अंतर्यात्रा है। जो निरंतर साधु के चलती रहती है। तपस्या का अपना महत्त्व है। नवरात्र में आध्यात्मिक अनुष्ठान चलता है, इससे आध्यात्मिक शक्ति का संचय होता है। गुरुदेव तुलसी व आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी के समय से यह अनुष्ठान चल रहा है। नियम, संयम, स्वाध्याय, ध्यान, प्रतिक्रमण आदि भी यात्रा है। प्रतिक्रमण आत्मा का आध्यात्मिक स्नान हो जाता है। पूज्यप्रवर ने तपस्या के प्रत्याख्यान करवाए। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने समझाया कि इच्छाएँ आकाश के समान हैं, इनका नियंत्रण करें।