संवर और निर्जरा मोक्ष प्राप्ति के कारण हैं : आचार्यश्री महाश्रमण
नंदनवन, 11 अक्टूबर, 2023
पंचाचार के अखंड आराधक, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण जी ने आगम वाणी की अमृत वर्षा करते हुए फरमाया कि भगवती सूत्र में प्रश्न किया गया कि जीवों के जो दुःख होता है, वो आत्मकृत होता है, परस्कृत होता है या उभयकृत होता है? प्राणी दुःख क्यों पाता है? दुःख का कारण क्या है? दुःख हमारी दुनिया में है। प्र्राणी दुःख-वेदना का संवेदन करते हैं। कई कारणों से दुःख हो सकता है। शारीरिक और मानसिक दुःख हो सकता है। दुःख है, तो दुःख का कारण है। दुःख की मुक्ति भी है, तो दुःख-मुक्ति का कारण भी है। नव तत्त्वों में एक तत्त्व है-पाप। पापोदय है, तो दुःख होता है। आश्रव के द्वारा पाप का बंध हुआ है। मोक्ष अपने आपमे सर्व दुःख से मुक्ति है। संवर और निर्जरा मोक्ष प्राप्ति के कारण हैं।
जितनी हमारी संवर-निर्जरा की भावना होगी, मोक्ष निकट होगा। दुःख आत्मा ने ही पैदा किया है। हमारे कर्मों से ही हम पाप कर्म का फल भोग रहे हैं। व्यवहार में कोई निमित्त हो सकता है। पूर्वकृत कर्मों से ही जीव दुखी होता है। पाप कर्म का उदय नहीं है तो जीव कोई दुःख नहीं दे सकता। उपादानतः कोई दुःख देने वाला नहीं है। दुःख सब आत्मा कृत ही है। पूज्य जयाचार्य की आराधना की ढालों से दुःख के कारणों को समझा जा सकता है। पुण्य सुख का कारण है, पाप दुःख का कारण है। गज सुकुमाल मुनि के जीवन को देखें। कितने भवों के बाद कर्मों का उदय हुआ। पूरे प्रसंग को विस्तार से समझाया। दुःखों को शांति-समता से सहें। किसी से द्वेष न करें, यह अध्यात्म का सिद्धांत है। पूज्यप्रवर ने तपस्या के प्रत्याख्यान करवाए। प्रातः पूज्यप्रवर ने साध्वी पावनप्रज्ञा जी की 8 दिन की संलेखना के साथ संथारा पचक्खा दिया। साध्वी पावनप्रज्ञा जी को पूज्यप्रवर ने 5 अक्टूबर को ही श्रेणी आरोहण करा, दीक्षा प्रदान कराई थी। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने देवगति के बारे में समझाया।