दूसरों को चित्त समाधि देने में करें अपनी शक्ति का उपयोग : आचार्यश्री महाश्रमण
दो दिवसीय राष्ट्रीय काॅरपोरेट काॅन्फ्रेंस का शुभारंभ
नंदनवन, 14 अक्टूबर, 2023
जिन शासन प्रभावक आचार्यश्री महाश्रमण जी ने भगवती सूत्र की विवेचना करते हुए फरमाया कि हमारे जीवन में चेतना-आत्मा का मूल तत्त्व है। साथ में शरीर भी जुड़ा हुआ है। हम संज्ञी पंचेन्द्रिय प्राणी हैं। हमारे पास आत्मा के सिवाय तीन चीजें और होती हैं-मन, वचन और काया। सारे प्राणियों के पास ये तीनों चीजें नहीं होती हैं। एकेंन्द्रिय-स्थावरकाय के सिर्फ एक काया होती है। द्विन्द्रिय, त्रिइंद्रिय, चतुरिन्द्रिय और असंज्ञी पंचेन्द्रिय उनमें दो चीजें शरीर और वाणी होती है। संज्ञी पंचेन्द्रिय के पास मन, वाणी और शरीर होता है।
यहाँ प्रश्न किया गया है कि प्रणिधान कितने प्रकार का होता है? प्रणिधान में प्र और णि उपसर्ग है, धान धातु है। प्रणिधान यानी किसी एक केंद्र पर स्थापित कर देना। एकाग्रता का हो जाना, समाधि का रहना आदि अनेक अर्थ हो जाते हैं। उत्तर दिया गया-गौतम! प्रणिधान तीन प्रकार का होता है-मन, प्रणिधान, वचन प्रणिधान और काय प्रणिधान। ये तीनों हमारे पास हैं। उपयोग दो प्रकार का हो जाता है-शुभ प्रणिधान और अशुभ प्रणिधान। अगर आदमी बुरा सोचता है, अशुभ कल्पना और चिंतन करता है तो मन दुर्मन बन जाता है। मन दुर्मन न बन सुमन रहे। ध्यान-योग साधना के द्वारा मन को एकाग्र करने का, मन को एक बिंदु पर स्थापित करने का प्रयास रहे। हमारा मन आर्त-रौद्र अशुभ ध्यान में न जाए।
मन के द्वारा कभी बढ़िया चिंतन कर सकते हैं, तो मन के द्वारा कभी दुखी भी बन जाते हैं। मन हमारा निर्मल रहे। समता और संयम में रहे। मन में बुरे विचार आ जाएँ तो मन में ये घोषणा कर दें कि ये विचार मेरे नहीं हैं। मैं अलग हूँ, विचार अलग है। उस समय अच्छे पाठ का स्वाध्याय जप करें। हम अच्छे कल्याणकारी विचार मन में रखें। स्वयं अच्छे रहें और दूसरों को भी धार्मिक-आध्यात्मिक संस्कार देते रहें। वचन का भी अच्छा प्रयोग करें। अयथार्थ बातें न करें। अनावश्यक कटु वचनों का प्रयोग न करें। अपने शरीर में शक्ति है, उसका दूसरों का दुःख दूर करने, चित्त समाधि देने का प्रयास करें। शरीर से धार्मिक, आध्यात्मिक साधना करें। हम मन, वचन, काय का आध्यात्मिक उपयोग करें। आज से दो दिवसीय टीपीएफ का कोर्पोरेट अधिवेशन पूज्यप्रवर की सन्निधि में शुरू हुआ। आज का मुख्य विषय था पर्यावरण सुरक्षा।