आत्मा से निकटता बनाने का माध्यम है आध्यात्मिक साधना : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

आत्मा से निकटता बनाने का माध्यम है आध्यात्मिक साधना : आचार्यश्री महाश्रमण

नंदनवन, 12 अक्टूबर, 2023
ससीम को असीम बनाने वाले, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण जी ने भगवती सूत्र की विवेचना करते हुए फरमाया कि आत्मवाद अध्यात्म जगत का एक प्रमुख सिद्धांत प्रतीत हो रहा है। जैन दर्शन में आत्मा-जीव के बारे में उल्लेख मिलता है। सृष्टि में दो ही तत्त्व हैं-जीव और अजीव। राजगृह का प्रसंग और प्रश्न किया गया कि जीव भाव की अपेक्षा प्रथम है या अप्रथम। प्रथम यानी जिसका प्रारंभ हुआ हो। अप्रथम यानी जिसका प्रारंभ ही नहीं हो। जीवत्व की अपेक्षा जीव है, वह प्रथम नहीं है, अप्रथम है। जीव का कभी प्रारंभ नहीं हुआ। जीव हमेशा ही था और हमेशा ही रहेगा। अनंत-अनंत जीव हैं। जीव का कभी नाश नहीं होता।
आगे प्रश्न किया गया कि सिद्ध प्रथम है या अप्रथम? उत्तर दिया गया-जीव प्रथम है, अप्रथम नहीं है। जीव कभी सिद्ध बनता है। कोई जीव हमेशा से सिद्ध नहीं था। जीव और सिद्ध में उल्टापन है। अनंत काल पहले जितने जीव थे, उतने ही हैं, अनंत काल में भी एक जीव भी कभी बढ़ेगा नहीं न कम होगा। आत्मा अरूपी है। उसमें वर्ण-गंध, रस स्पर्श नहीं है। सिद्ध भी आत्मा जैसे पूर्णतया शुद्ध है। संसारी जीव कर्मों के कारण अशुद्ध हो जाते हैं। सिद्ध आत्मा तो अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन संयुक्त है। ज्ञान से आत्मा को जाना जा सकता है। आत्मा है कि नहीं यह प्रश्न हो सकता है, इसको एक प्रसंग से समझाया कि जो खाली है वहाँ राम-राम है, परमात्मा का निवास है। हम कषायों से युक्त हो खाली होंगे तो परमात्मा बन सकेंगे। गुरु की बात सही होती है, हमें मान लेनी चाहिए।
साधना करने से जीव आत्मा के निकट जा सकते हैं। हमारी ये जीव से सिद्धत्व तक की यात्रा है, इस यात्रा को आगे बढ़ाना चाहिए। चैदहवाँ गुणस्थान प्राप्त होगा तो सिद्धत्व प्राप्त हो सकेगा। अध्यात्म की साधना से सिद्धत्व-शिवपद को प्राप्त करने का प्रयास करें। यात्रा में भी कठिनाई हो सकती है, पर कठिनाई को समता से, सहन करते हुए आगे बढ़ें। हम अप्रथम से प्रथम बनने की यात्रा करें और आगे बढ़ें। पूज्यप्रवर ने तपस्या के प्रत्याख्यान करवाए।
साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी ने कहा कि हमारी जिंदगी कैसी भी हो, हर स्थिति में उसका मूल्य है। हमारा जीवन मूल्यवान बने। समय का सही नियोजन करने वाला, समय के महत्त्व को जानने वाला सफल हो सकता है। काल के प्रदेश नहीं होते हैं। बीता समय हम लौटा नहीं सकते। समय के पंख लगे हैं, वह भागता रहता है। हमें जीवन में समय को पकड़ना है। अवसर पर समय का सदुपयोग करें। सज्जनबाई रांका ने 9 की तपस्या एवं नैनादेवी गादिया ने 31 की तपस्या के प्रत्याख्यान पूज्यप्रवर से ग्रहण किए। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।