संवत्सरी महापर्व का आयोजन
बाड़मेर।
साध्वी जिनबाला जी के सान्निध्य में बाड़मेर तेरापंथ भवन में अष्टाह्निक पर्वाधिराज पर्युषण महापर्व की आराधना की गई। जिसमें साध्वी भव्यप्रभा जी ने आठ दिनों तक उत्तराध्ययन सूत्र के 14वें अध्ययन का वाचन किया। साध्वी प्राचीप्रभा जी ने केंद्र द्वारा निर्धारित विषयों पर गीतों की प्रस्तुति दी। रात्रिकालीन सत्र में सभी साध्वियों ने विविध विषयों पर सुंदर, रोचक व प्रेरक संस्मरण आदि सुनाकर सबको रोमांचित कर दिया। खाद्य संयम दिवस: साध्वी जिनबाला जी ने पर्युषण महापर्व के महत्त्व को बताते हुए खाद्य संयम करने की विशेष प्रेरणा प्रदान की। साध्वीश्री जी ने कहा कि खाने के तीन कारण हैंµस्वाद के लिए खाना, भूख मिटाने के लिए खाना और साधना के लिए खाना। हम अपने पेट को मालगोदाम, लेटर बाॅक्स या कब्रिस्तान न बाएँ।
साध्वी करुणाप्रभा जी ने ‘श्रमण भगवान महावीर’ के भव परंपरा का विवेचन करते हुए नयसार व मरीची के भव का वर्णन किया। स्वाध्याय दिवस: साध्वी जिनबाला जी ने स्वाध्याय दिवस पर प्रकाश डालते हुए कहा कि स्वाध्याय दो शब्दों से बना है। स्व$अध्याय यानी स्वयं का अध्ययन करना। जिस दिन हम अपने आपको देखने लग जाएँगे तब से हमारी बुरी आदतों में स्वतः परिवर्तन होने लग जाएगा। साध्वीश्री जी ने हाजरी का वाचन किया। ज्योति जैन ने श्रावक निष्ठा पत्र का वाचन किया। साध्वी करुणाप्रभा जी ने भगवान महावीर का जीवन-दर्शन प्रस्तुत करते हुए कहा कि मरीची के भव में धर्म की मिथ्या प्ररूपणा करने के कारण भगवान महावीर के जीव को अनेकों भव करने पड़े।
सामायिक दिवस: साध्वी जिनबाला जी ने सामायिक दिवस पर कहा कि सामायिक सम तथा आयिक शब्दों से बना हुआ है अर्थात् जिससे समता का लाभ हो उसे सामायिक कहते हैं। सामायिक अमूल्य होती है। भगवान महावीर ने विशेषावश्यक भाष्य में सामायिक को नमस्कार महामंत्र की तरह ही चैदह पूर्वों का सार बताया है। साध्वी करुणाप्रभा जी ने भगवान महावीर के 18वें तथा 17वें भव का वर्णन करते हुए विश्वभूति के भव का वर्णन किया। साध्वी भव्यप्रभा जी ने अभातेयुप द्वारा निर्देशित ‘अभिनव सामायिक’ का प्रयोग करवाया।
वाणी संयम दिवस: साध्वी जिनबाला जी ने वाणी संयम की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हमें बोलने में विवेक रखना चाहिए। भगवान महावीर ने कहा कि हमें सत्य, प्रिय, हित तथा मित व ग्रहणीय हो, ऐसी भाषा का प्रयोग करना चाहिए। साध्वी करुणाप्रभा जी ने भगवान के 22वें, 23वें एवं 25वें भव तथा तीर्थंकर गोत्र बंधन के 20 कारणों का उल्लेख किया। अणुव्रत दिवस: साध्वी जिनबाला जी ने कहा कि अणुव्रत यानी छोटे-छोटे व्रत। अणुव्रत दिवस पर ज्यादा से ज्यादा व्यक्ति अणुव्रत के नियमों को समझकर उसे स्वीकर करने का प्रयास करें। अणुव्रत समिति के अध्यक्ष ओमप्रकाश जोशी ने अणुव्रत दिवस पर अपने विचार व्यक्त किए। काफी संख्या में भाई-बहनों ने अणुव्रत संकल्प पत्र भरे।
साध्वी करुणाप्रभा जी ने भगवान महावीर के 27वें भव का वर्णन करते हुए कालचक्र का वर्णन किया। जप दिवस: साध्वी जिनबाला जी ने जप दिवस के विषय में कहा कि जप से जन्म व पाप का विच्छेद होता है। मंत्र का भी दुरुपयोग नहीं करना चाहिए। उच्चारण शुद्ध करना चाहिए। साध्वी करुणाप्रभा जी ने कहा कि जब भगवान महावीर का जन्म हुआ तब कुछ क्षण के लिए नारकी जीवों ने सुख का अनुभव किया। शकेंद्र देव अपने आसन से उठकर जिस दिशा में भगवान का जन्म होता है उस दिशा में बैठकर भगवान को वंदन करते हैं तथा सुघोष घंटा बजाकर भगवान के जन्मोत्सव की घोषणा करते हैं।
ध्यान दिवस: साध्वी जिनबाला जी ने ध्यान के विषय में कहा कि घरों में सोफासेट, डायमंड से, ज्वैलरी सेट आदि अनेकों सेट होने पर भी यदि माइंड अपसेट है तो अन्य सारे सेट बेकार हैं। ध्यान के माध्यम से हम अपना माइंड सेट कर सकते हैं। प्रेक्षाध्यान के माध्यम से नशे की आदत से भी छुटकारा पाया जा सकता है। साध्वी करुणाप्रभा जी ने भगवान महावीर के नामकरण के बारे में बताया। साध्वीश्री जी ने भगवान महावीर के बालक्रीड़ा, विवाह आदि के बारे में भी बताया। संवत्सरी महापर्व: साध्वी भव्यप्रभा जी ने आगम का वाचन किया। साध्वीवृंद ने संवत्सरी महापर्व के अवसर पर सामूहिक गीत का संगान किया। साध्वी जिनबाला जी ने संवत्सरी महापर्व के इतिहास का विस्तार से वर्णन करते हुए कालचक्र के बारे मेें समझाया।
साध्वी करुणाप्रभा जी ने भगवान महावीर की जीवनी के अंतर्गत भगवान की दीक्षा तथा साधना काल के बारे में बताया। साध्वी प्राचीप्रभा जी ने चंदबाला की पूरी जीवनी तथा तेरापंथ के ग्यारह आचार्यों का जीवन-दर्शन प्रस्तुत किया। साध्वी भव्यप्रभा जी ने भगवान महावीर के केवल ज्ञान, देशना तथा निर्वाण के बारे में बताया। तत्पश्चात गणधरवाद, आगमयुग के उत्कर्षयुग तथा नवीन युग के प्रभावक आचार्यों के बारे में विस्तृत जानकारी दी। कार्यक्रम में शुरू से लेकर अंत तक श्रावक-श्राविकाओं की उपस्थिति अच्छी रही। बाड़मेर तेरापंथ भवन में अष्टप्रहरी, छः प्रहरी तथा चार प्रहरी पौषध करने वालों की संख्या लगभग 136 रही। दो 12 प्रहरी पौषध हुए। अल्पसंख्यक परिवारों के होते हुए भी ज्ञानशाला के आठ बच्चों ने चार प्रहरी पौषध किए।
कार्यक्रम में कन्या मंडल की 24 कन्याओं ने 24 तीर्थंकरों की जीवनी प्रस्तुत की। तेरापंथ समाज के अतिरिक्त इतर संप्रदाय के भाई-बहनों ने भी अच्छी संख्या में उपवास व पौषध किए। कार्यक्रम का समापन साध्वी जिनबाला जी के मंगलपाठ से हुआ। क्षमायाचना दिवस के अवसर पर समाज के सभी संस्थाओं के पदाधिकारियों द्वारा क्षमायाचना की गई तथा साध्वीवृंद द्वारा क्षमा के महत्त्व को उजागर करते हुए क्षमायाचना की गई।