अवबोध

स्वाध्याय

अवबोध

कर्म बोध
बंध व विविध
 
प्रश्न 9 : आत्मा-चेतन पर कर्म-जड़ का प्रभाव कैसे पड़ता है?
उत्तर : कर्म का मन, वचन व काया पर गहरा प्रभाव पड़ता है। इन तीनों का सीधा संबंध आत्मा से है, इसलिए कर्म आत्मा द्वारा आकष्ज्र्ञित होते हैं। स्थूल रूप से भी यह देखा जाता है-शराब पीने वाला व्यक्ति अपनी चेतना को खो बैठता है, पागल सदृश बन जाता है। अचेतन-शराब का चेतन-व्यक्ति पर इतना प्रभाव पड़ता है, फिर कर्म का आत्मा पर प्रभाव क्यों नहीं हो सकता।
 
प्रश्न 10 : कर्म का आत्मा पर किस रूप में असर होता है?
उत्तर : निम्नोक्त चार प्रकार से कर्मों का असर आत्मा पर होता है-
(1) आवरण, (2) अवरोध, (3) विकार, (4) शुभाशुभ संयोग।
  आवरण - ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय।
  अवरोध - आयुष्य, अंतराय।
  विकार - मोहनीय।
  शुभाशुभ संयोग - वेदनीय, आयुष्य, नाम, गोत्र।
 
प्रश्न 11 : क्या कर्म आत्मा के सभी प्रदेशों के बंधते हैं?
उत्तर : आत्मा के सभी असंख्य प्रदेशों से प्रवृत्ति होती है और सभी आत्म-प्रदेशों के कर्मों की अनंत वर्गणाएँ बंधती हैं। आगमों में वर्णित ‘सव्वं सव्वेण बंधई’ सिद्धांत से आत्मा के समस्त प्रदेशों के कर्म बंधन होता है। कुछ आचार्य आत्मा के आठ रूचक प्रदेशों को सर्वथा अबद्ध मानते हैं।
 
प्रश्न 12 : कर्म वर्गणा का बंध होता है, वे एक कर्म से संबंधित होती है या आठों कर्मों से?
उत्तर : कर्म वर्गणा प्रति समय जीव के बंधती है, उनका क्रम इस प्रकार है-सामान्यतया आयुष्य कर्म को छोड़कर सात कर्मों से वे वर्गणाएँ संबंधित हो जाती हैं। जीवन में एक बार आयुष्य कर्म बंधता है, उस समय में बंधने वाली वर्गणाएँ आठों कर्मों से संबंधित हो जाती हैं।
(क्रमश:)