जैन एकता का महापर्व - संवत्सरी महापर्व
लुधियाना।
शासनश्री साध्वी वसंतप्रभा जी के सान्निध्य में नवाह्निक कार्यक्रम तेरापंथ सभा के तत्त्वावधान में मनाया गया।
श्रीमद् जयाचार्य का निर्वाण दिवस: साध्वीश्री जी के मंत्रोच्चार से प्रारंभ हुआ। साध्वी कल्पमाला जी ने जयाचार्य पर रोचक कविता व गीत प्रस्तुत किया। साध्वी रोहितयशा जी ने गीत का संगान किया। साध्वी संकल्पश्री जी ने जयाचार्य के नाम में कितनी शक्ति है, उसे अनेक उदाहरणों द्वारा समझाया। साध्वी वसंतप्रभा जी ने कहा कि पर्युषण से पूर्व दिन जयाचार्य दिवस हमें जाग्रत करने के लिए आया है। आज से हम जागे और नवाह्निक कार्यक्रम को उत्साह के साथ मनाए। जयाचार्य उस प्रतिभा का नाम है जिसने शास्त्र सागर का पूर्ण जागरूकता एवं एकाग्रता से अवगाहन किया।
खाद्य संयम दिवस: कार्यक्रम का प्रारंभ साध्वी रोहितयशा जी के मंगलाचरण से हुआ। साध्वी संकल्पश्री जी ने कहा कि कितना खाएँ, क्या खाएँ, कैसे खाएँ? इन सबका ज्ञान होना चाहिए। खाने का संयम ही स्वास्थ्य का नियम जान सकता है। साध्वी कल्पमाला जी ने रोचक कविता प्रस्तुत की। साध्वी वसंतप्रभा जी ने कहा कि भगवती सूत्र में भोजन कैसे करें? इसका सुंदर विवेचन किया गया है।
स्वाध्याय दिवस: साध्वी कल्पमाला जी के मंगलाचरण के पश्चात भगवान महावीर के सत्ताइस भवों का वर्णन, कल्पसूत्र का वाचन किया। तत्पश्चात साध्वी संकल्पश्री जी ने आगम वाणी के आधार पर अपने विचार रखे। साध्वी रोहितयशा जी ने स्वाध्याय पर विचारों की प्रस्तुति दी। साध्वी कल्पमाला जी ने प्रस्तुति देते हुए कविता अभिव्यक्त की।
साध्वी वसंतप्रभा जी ने कहा कि मैं कौन हूँ, कहाँ से आया हूँ, कहाँ जाना है? इन बातों का असली स्वाध्याय करना है। स्वाध्याय वह दर्पण है जिसमें अपने रूप को देखकर सँवारने की व्यवस्था की जाती है।
सामायिक दिवस: साध्वी कल्पमाला जी के मंगलाचरण व भगवान महावीर के भव के साथ प्रथम बार उत्साह के साथ सभी ने अभिनव सामायिक में भाग लिया। लगभग 147 घर लुधियाना में खुले हैं, जिनमें लगभग एक सौ इक्यावन सामायिक एक साथ हुई। अभिनव सामायिक साध्वी संकल्पश्री जी ने करवाई। साध्वी कल्पमाला जी ने कविता प्रस्तुत की। साध्वी वसंतप्रभा जी ने कहा कि जिस व्रत में समता की प्राप्ति हो वास्तव में वो ही सामायिक है। प्रत्येक कार्य में समता रखना जरूरी है। सामायिक की उपयोगिता समझें।
वाणी संयम दिवस: साध्वी कल्पमाला जी के कल्पसूत्र वाचन के पश्चात् साध्वी रोहितयशा जी ने वाणी संयम पर अपने विचार रखे। साध्वी संकल्पश्री जी ने कहा कि वाणी से व्यक्ति के चरित्र की पहचान हो जाती है। मौन हमें व्यवहारिक भी बनाता है। वाणी संयम जीवन में जरूरी है। साध्वी वसंतप्रभा जी ने कहा कि मौन मन की शांति का प्रभावक उपाय है। मधुर वाणी से व्यक्ति सारे संसार को अपना बना लेता है। मौन अशांत मन को शांत बनाता है। साध्वी कल्पमाला जी ने कविता प्रस्तुत की।
अणुव्रत चेतना दिवस: साध्वी कल्पमाला जी के भगवान महावीर के भव के पश्चात साध्वी संकल्पश्री जी ने अणुव्रत के ग्यारह नियमों की चर्चा की। साध्वी रोहितयशा जी ने अपने विचार व्यक्त किए। साध्वी कल्पमाला जी ने कविता प्रस्तुत की। साध्वी वसंतप्रभा जी ने कहा कि गुरुदेव श्री तुलसी ने अणुव्रत आंदोलन का सूत्रपात किया। छोटे-छोटे नियमों का पालन करने से व्यक्ति का जीवन सुधर जाता है।
जप दिवस: साध्सवी कल्पमाला जी के कल्पसूत्र के बाद साध्वी रोहितयशा जी ने जप पर अपनी अभिव्यक्ति दी। साध्वी संकल्पश्री जी ने आगम वाणी के आधार पर जप का विवेचन किया। साध्वी वसंतप्रभा जी ने अपने विचारों की प्रस्तुति दी। साध्वी कल्पमाला जी ने सुमधुर गीत व कविता प्रस्तुत की।
ध्यान दिवस: साध्वी कल्पमाला जी के मंगलाचरण के पश्चात साध्वी रोहितयशा जी ने अपने विचार रखे। साध्वी संकल्पश्री जी ने ध्यान क्यों जरूरी है, इसका विवेचन किया। साध्वी वसंतप्रभा जी ने ध्यान का महत्त्व बताया।
शासनश्री जी ने तपस्या का जिक्र करते हुए कहा कि इस बार लुधियाना में रिकाॅर्ड बना है। भाइयों में पहली बार तपस्या की पचरंगी दो-दो हुई, बहनों में भी पचरंगी लगभग दो हुई, मासखमण एक, तीन पखवाड़ा, 21 अठाई, सात, छः पंचालों चोला, तेले का कीर्तिमान बना है। ज्ञानशाला के छोटे-छोटे बच्चों ने पर्युषण काल में द्रव्यों की सीमा रखना, दर्शन करना, प्रवचन सुनना, जमीकंद का त्याग रखना, सामायिक करना इत्यादि नियमों के साथ पर्युषण मनाया छोटे-छोटे बच्चों ने उपवास के साथ पौषध भी किया। कुछ बच्चों ने एकासन की अठाई भी की। इस बार तपस्या के साथ एकासन के मासखमण, 4-5 की तपस्या 90 एकासन एक साथ भी हुए।
संवत्सरी महापर्व: जैन धर्म का आलौकिक पर्व संवत्सरी महापर्व का प्रारंभ साध्वी रोहितयशा जी के मंगलाचरण से हुआ। उसके पश्चात् उत्तराध्ययन सूत्र का अध्ययन प्रस्तुत किया। लगभग एक घंटा तक प्रस्तुति दी। साध्वी कल्पमाला जी ने भगवान महावीर के जीवन को जन्म से लेकर दीक्षा से पूर्व तक का वर्णन किया। साध्वी संकल्पश्री जी ने भगवान महावीर के जीवन के साथ संवत्सरी क्यों, कैसे मनाएँ इसका विवेचन किया। साध्वीवृंद द्वारा सामुहिक सुमधुर गीत का संगान किया गया।
साध्वी वसंतप्रभा जी ने अपने उद्बोधन में लगभग दो घंटे तक धाराप्रवाह भगवान महावीर के साधना काल का वर्णन प्रस्तुत करते हुए कैवल्य प्राप्ति व भगवान महावीर की तपस्याओं का वर्णन भी प्रस्तुत किया। साध्वी कल्पमाला जी ने सुमधुर गीत प्रस्तुत किया। साध्वी रोहितयशा जी ने महासती चंदनबाला का वर्णन प्रस्तुत किया। साध्वी कल्पमाला जी ने संवत्सरी पर क्षमा का आदान-प्रदान न करने से क्या होता है तथा उत्तराध्ययन सूत्र के आधार पर प्रतिक्रमण व प्रायश्चित का वर्णन रोचकता के साथ प्रस्तुत किया।
साध्वी वसंतप्रभा जी ने संवत्सरी महापर्व के अंतिम चरण में प्रभावक आचार्यों का वर्णन व ग्यारह आचार्यों की जीवनी तथा साध्वीप्रमुखाओं पर प्रकाश डाला। प्रातः सामुहिक क्षमायाचना के पश्चात् अष्टमाचार्य कालुगणी निर्वाण दिवस पर बेला, तेला करने की प्रेरणा दी गई। बहुत से भाई-बहनों ने तेला करके सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित की।