सच्चाई की देवी सदैव हमारे मन में रहे : आचार्यश्री महाश्रमण
नंदनवन, 22 अक्टूबर, 2023
मोक्षमार्ग के पथदर्शक आचार्यश्री महाश्रमण जी ने भगवती सूत्र की विवेचना करते हुए फरमाया कि जैन शास्त्रों में बत्तीस आगम सम्मत है। उनमें से एक यह भगवई विवाग पण्णति है। इन ग्रंथों में तत्त्व बोध संग्रहीत किया गया है। जीवन जीने का पथ दर्शन प्राप्त किया जा सकता है। भगवती सूत्र में भाषा के बारे में प्रश्न किया गया है कि भाषाµनिर्वृत्ति कितने प्रकार की प्रज्ञप्त है? भाषाएँ अनेक प्रकार की होती हैं, पर यहाँ हम भाषा किस प्रकार बोलते हैं, इस बारे में पूछा गया है कि आदमी भाषा कितने रूपों में बोल सकता है। उसके यहाँ चार प्रकार बताए गए हैंµसत्य भाषा निर्वृत्ति, असत्य भाषा निर्वृत्ति, सत्य-मृषा भाषा निर्वृत्ति और असत्या मृषा भाषा निर्वृत्ति।
आदमी कभी सत्य भाषा बोल लेता है, कभी असत्य भाषा भी बोल देता है। साधु को तो कभी झूठ-मृषा नहीं बोलना पर गृहस्थ झूठ बोलने का त्याग नहीं कर सकता। सत्य में भी निरवद्य सत्य हो। सत्य भाषा भी जो प्रिय हो। वैसा सत्य मत बोलो जो अप्रिय हो। प्रिय भी असत्य मत बोलो। यह शाश्वत धर्म है। हर सत्य हर जगह बोलना आवश्यक नहीं है। सत्य बात भी कहाँ बोलनी है, कहाँ नहीं बोलनी यह विवेक साधु में हो। मीठा बोलना सामने वाले को वश में कर लेता है। बोलो तो सत्य बोलो, किसी के बारे में झूठ मत बोलो। हमें भाषा लब्धि-निर्वृत्ति प्राप्त है। आदमी क्रोध, लोभ, भय और हास्य के कारण झूठ बात बोल सकता है। इससे आदमी अपराध भी कर सकता है।
राग और द्वेष कर्म बंध के बीज हैं। वीतराग राग-द्वेष से मुक्त होता है। गीता में भी स्थितप्रज्ञ शब्द आया है। यह भी वीतराग का ही स्वरूप है। जो अपनी आत्मा में संतुष्ट है, वह स्थितप्रज्ञ है। प्रिय मिल जाए तो सुखी मत बनो और अप्रिय मिल जाए तो द्वेष मत करो। लाभ-अलाभ आदि योगों में सम रहो। काम-क्रोध क्षीण हो जाने पर आदमी अपराध मुक्त हो जाता है। जैन दर्शन में आत्मवाद, कर्मवाद के साथ पुनर्जन्म के अनेक प्रसंग मिल जाते हैं। जैसे आदमी जीर्ण हुए कपड़ों को छोड़कर नया कपड़ा पहनता है, यही बात पुनर्जन्म की है। सत्य-मृषा भाषा यानी मिश्र भाषा। असत्य मृषा भाषा व्यवहार की भाषा होती है। गृहस्थ कम से कम किसी पर झूठा आरोप तो न लगाए। मृषा भाषा से दूसरों को कष्ट में डालने का प्रयास न करें।
कृष्णाजी जो सुप्रीम कोर्ट से जुड़े हैं, आज यहाँ पधारे हैं। न्याय तो एक प्रकार का मंदिर है, न्यायाधीश उसकी मूर्ति है। हमारी चेतना में शुद्धता रहे। सच्चाई की देवी हमारे मन में रहे। हम मृषा भाषा से बचने का प्रयास करें तो यह हमारे लिए ठीक हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज पी0एन0 कृष्णा पूज्यप्रवर की सन्निधि में टीपीएफ की काॅन्फ्रेंस के अंतर्गत पहुँचे। पी0एन0 कृष्णा ने कहा कि चार बातें आहार, निद्रा, भय और मैथुन से मनुष्य और पशु में अंतर किया जा सकता है। मनुष्य धर्म के अंतर्गत रहकर अपनी क्रिया करता है। कर्म करते रहोµफलों की चिंता मत करो। आत्म-दर्शन ही आत्म सुख है।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि आशंका से व्यक्ति में नकारात्मक भाव आ जाते हैं और वह अनर्थ कर बैठता है। विकास के लिए आवश्यक है कि हम सकारात्मक बनें। जितना चिंतन हमारा सकारात्मक होगा हम लक्ष्य के निकट पहुँच जाएँगे। सकारात्मक व्यक्ति का मनोबल मजबूत होता है, उसको कोई मार्ग से विचलित नहीं कर सकता। व्यवस्था समिति अध्यक्ष मदनलाल तातेड़ ने स्वागत रूप में अपनी भावना अभिव्यक्त की। टीपीएफ एवं व्यवस्था समिति द्वारा पी0एन कृष्णा का सम्मान किया गया। कार्यक्रम से पूर्व पूज्यप्रवर ने अनुष्ठान-जप करवाया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।