हम इंद्रियों का संयम रखने का प्रयास करें : आचार्यश्री महाश्रमण
नंदनवन, 18 अक्टूबर, 2023
तेरापंथ के महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमण जी ने आगम वाणी की अमृत वर्षा करते हुए फरमाया कि भगवान महावीर के उपपात में ब्राह्मण सौमिल की उपस्थिति और सौमिल ब्राह्मण ने परम प्रभु से एक प्रश्न यात्रा के बारे में पूछा था। प्रभु ने यात्रा पर प्रकाश डाला था। दूसरा प्रश्न था कि आप यमनीय को मान्य करते हैं क्या? प्रभु ने यह भी स्वीकार किया था कि यमनीय मुझे मान्य है। प्रश्न पूछा गया-यमनीय होता क्या है? तो परम प्रभु ने फरमाया कि यमनीय दो प्रकार का होता है-इंद्रिय यमनीय और नो-इंद्रिय यमनीय। यमनीय यानी नियंत्रण-वश में रखना। संयमन करना।
इंद्रिय यमनीय यह कि मेरी जो इंद्रियाँ हैं श्रोतेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय जीभेन्द्रिय और स्पर्शनेन्द्रिय ये सक्षम होकर भी इंद्रियाँ मेरे वश में रहती हैं। वह मेरा इंद्रिय यमनीय है। नो-इंद्रिय यमनीय जो इंद्रियों से अलग है। क्रोध, मान, माया और लोभ ये विच्छिन्न होने से उदिरित नहीं होती है, वह नो-इंद्रिय यमनीय है कि कषाय का मेरे उदय नहीं है।
वीतराग भगवान के तो यमनीय होता ही है, पर प्रश्नकर्ता के भी यमनीय हो। पाँच इंद्रियों को वश में कर लेना इंद्रिय यमनीय है। खमासमणों की पाटी में ये शब्द आते हैं। सघन साधना शिविर के संभागी हैं। इस शिविर में भी इंद्रिय संयम की प्रेरणा दी जाती है। गृहस्थ के भी एक सीमा तक इंद्रिय-संयम अपेक्षित है। इंद्रियाँ हमें बाह्य जगत से जोड़ने वाली होती है। आचार्य भिक्षु ने तो अपने ग्रंथ इंद्रियवादी की चैपाई में इंद्रिय संयम के बारे में बताया है। हम इंद्रियों का संयम रखने का प्रयास करें। बिना अपेक्षा किसी पदार्थ के प्रति रागात्मक आकर्षण न हो। मनोज्ञ वस्तु लग रही है, उसको आज के लिए छोड़ दो। कषाय हमारा प्रतनू हो जाए। इनका भी संयम करने का प्रयास करना चाहिए। सघन साधना में ये दोनों प्रयोग सध जाएँ तो हमारे लिए श्रेयस्कर हो सकता है। प्रवचन से पूर्व पूज्यप्रवर ने नवाह्निक अनुष्ठान का जप करवाया। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने समणया कि हम विवेक से हेय-उपादेय का आचरण करें।