स्वीकार्यो संथारा
पावनप्रज्ञा जी स्वीकार्यो संथारा।
चढ़ते परिणामां स्यूं पावो भवसागर रो पार।।
मुंबई महानगरी नंदनवन महाश्रमण दरबार।
वंदन मुद्रा बोल्या गुरुवर! नाव लगाद्यो पार।।
आत्मा में थे लीन बण्या हो कण्टां में समभाव।
हाथां में है नवकरवाली मुगति री मन चाव।।
आत्मा न्यारी काया न्यारी ओ है मंत्र अमोद्य।
तार जुड्यो है आत्मा स्यूं बस मूल्या रोग अरु शोक।।
राह उजाली जीवन री थे काट्यो तन रो सार।
ममता भारी समता धारी खुलसी मुगति द्वार।।
अक्षयप्रज्ञा भगिनी थांरी घणो दिरायो साज।
साता पहुँचावे गीत सुणावे भाणेजी मधुर आवाज।।
लय: सुख दुख रा साथी----