संथारे की नव सौरभ महकाई है

संथारे की नव सौरभ महकाई है

अनुकंपा में संथारे की नव सौरभ महकाई है।
सतिशेखरे की सन्निधि पा, भाग्यलता लहराई है।।

महाकृपालु महाश्रमण गुरु ऊर्जा के अक्षय भंडार।
ममतामयी साध्वीप्रमुखाश्री बरसाते करुणा रसधार।
मुख्यमुनि की फली भावना मंगल घड़ियाँ आई हैं।
साध्वीवर्या ने कर अनुमोदन राह दिखाई है।।

चिन्मय से जब प्रीत जुड़े तब संथारा हो जाता है।
भृणमय से जब मोह टूटे तब अनशन अवसर आता है।
आत्मा भिन्न शरीर भिन्न की तुमने अलख जगाई है।।

कर अभेदभाव से सेवा अक्षय प्रणव उऋण बनी।
सहयोगी अब वर्ग मुदित का सेवा की नव ख्यात बणी।
जयविभा वैराग्य वीर पा चित्त समाधि पाई है।।

कड़ी कसौटी कर प्रभुवर ने अनशन का उपहार दिया।
जुद्धारियं दुल्लहं को निज दृढ़ता से साकार किया।
सार निकालो नश्वर तन का नाव किनारे आई है।।

लय: कलयुग बैंठा----