जागी जन्मों की पुण्याई
जागी जन्मों की पुण्याई, पाया भैक्षवगण नंदनवन।
गुरु महाश्रमण के चरणों में ही आत्मा बन जाए पावन।।
देखो आई छोटी सतियाँ जिनकी तुम सदा हो उपकारी।
अनगिन उपकारों से उपकृत हम सारे ही हैं आभारी।
लालन-पालन कर बड़ा किया महकाया है जीवन उपवन।।
अक्षयप्रज्ञाजी की सन्निधि में, पाया तुमसे अपनापन।
दादी माँ जैसे हम बच्चों का लाड़लड़ाती थी हरदम।
पल जो बीते पास तेरे, वे याद रहेंगे आजीवन।।
क्या पाया तुमसे संस्था में, किन शब्दों में अभिव्यक्त करें।
साधना सिद्धि, वैराग्य वृद्धि अरु चंचलता को अल्प करें।
छोटे-छोटे मंत्रों से करती, संस्कारों का अभिसिंचन।।
इस तीव्र वेदना में कैसे बन पाई तुम समताधारी?
अत्यंत मनोबल, जागरूकता और धृतिबल भी भारी।
गुरु की वत्सलता, कृपादृष्टि से जीवन बन गया।