सौ-सौ बार बधाई

सौ-सौ बार बधाई

धन्य हुए पावन प्रज्ञाजी! अद्भुत हिम्मत पाई।
सौ-सौ बार बधाई।।

समणी दीक्षा से मुनि दीक्षा, अनशन शीघ्र तुम्हारा।
तीव्र वेदना में भी समता, दीप रहा संथारा।
महाश्रमण गुरुवर आशीर्वर, भैक्षवगण पुण्याई।।

अक्षयप्रज्ञा प्रणवप्रज्ञा की सेवा देखी हमने।
यह भी गुरुवर की अनुकंपा अवसर पाया दोनों ने।
प्रथम बना इतिहास संघ का, जन्म धरा चमकाई।।

साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी का निर्देशन मंगल।
साध्वीगण का शुभ संरक्षण, मिलता पल-पल संबल।
साध्वी कंचनप्रभाजी आदि ने, गण की गरिमा गाई।।

लय: नैतिकता की सुर----