निज आत्मा को तारी
गुरु चरणों में लक्षित पथ पर पग-पग वरो विजय हो,
जीवन मंगलमय हो।
मुंबई पावस महाश्रमण की सन्निधि मंगलकारी,
उच्च मनोबल सन्मुख तेरे, बाधाएँ सब हारी,
संयम अरु संथारा दोनांे, सफल हुए निर्णय हो।
वर्धमान भावों से होती, कर्म कट की ढेरी।
समता साधक को मिलती है, दिव्य सुखों की भेरी,
साध्वीप्रमुखा चरण शरण में, सुकृत का संचय हो।
साध्वीवर्या श्रमणी समणी योग मिला सुखकारी,
अनशन नौका में शोभित हो, निज आत्मा को तारी,
साध्वी पावनप्रज्ञाजी अब, पाओ सुख अक्षय हो।
लय: नैतिकता की----