शिवशंकर को जिसने पूजा
पावनप्रज्ञा नाम यह पावन, अमर बना इतिहास में
अनशन का यह दृश्य है पावन, अमर बना इतिहास में
गुरु किरपा का अमृत वरसे, गुरु भक्ति हर साँस में
गुरु ही साँसों की सरगम तेरे, गुरु है नसनस में हरदम तेरे
जयकारा लगता मनभावन, रहता हर अहसास में गुरु किरपा।
जागी जन्मों की सचमुच ही पुण्याई है
साध्वी वेश यह सचमुच ही वरदाई है
ममता त्यागी तुमने, समता बहती तन में
सौम्य मुरत यह मनहारी है, शांत सुधारस की दिव्य क्यारी है।
वत्सलता हमपे जो तुने वरसाई है
मासी ममता जो हमने सबने पाई है
कृतज्ञता के वह स्वर, शुभ संस्कारों के स्वर
ध्यान हमारा रखवाती तुम
भूल न पाएँगे ममता की धुन।