अवबोध

स्वाध्याय

अवबोध

कर्म बोध
बंध व विविध

प्रश्न 13 : बंधने वाली कर्म वर्गणाएँ क्या आठों कर्मों में समान रूप में विभक्त होती हैं या न्यूनाधिक?
उत्तर : जिस कर्म की स्थिति ज्यादा हो उसके हिस्से में कर्म पुद्गल ज्यादा आएँग किंतु वेदनीय कर्म कम स्थिति के होंगे, फिर भी उसके हिस्से में कर्म प्रदेश ज्यादा आएँगे। आयुष्य कर्म एक बार बंधता है, उस समय में भी सबसे थोड़े कर्म पुद्गल उसके साथ जुड़ते हैं। उससे विशेषाधिक नाम व गोत्र दोनों के परस्पर में बराबर बंधते हैं। इनसे विशेषाधिकार ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, अंतराय कर्म परस्पर में तुल्स बंधते हैं। इनसे विशेशाधिक मोहकर्म के पुद्गल बंधते हैं। इनसे विशेषाधिक वेदनीय कर्म के हिस्से में आते हैं।

प्रश्न 14 : क्या कर्म के उदय के बिना भी कर्म का बंध हो सकता है?
उत्तर : नहीं, ऐसा कोई भी समय नहीं, बंध हो और उदय नहीं हो। संसारी जीवों के प्रतिक्षण कर्म का उदय चलता है।

प्रश्न 15 : कर्म का उदय चल रहा है, किंतु उसका बंध नहीं होता, ऐसा समय कभी आता है?
उत्तर : चैदहवें गुणस्थान के पंच हृस्वाक्षर उच्चारण जितने समय में यह प्रसंग जरूर बनता है। जब कर्म का उदय तो चलता है, पर बंध नहीं होता, क्योंकि वहाँ कर्म बंध का मुख्य हेतु आश्रव का पूर्ण निरोध हो चुका होता है।

प्रश्न 16 : नाम कर्म के उदय से पुण्य का बंध होता है। चैदहवें गुणस्थान में नाम कर्म का उदय चलता है, फिर वहाँ कर्म का बंध क्यों नहीं होता?
उत्तर : जहाँ पुण्य का बंध होता है, वहाँ नाम कर्म का उदय अवश्य रहता है। जहाँ नाम कर्म का उदय रहता है, वहाँ पुण्य का बंध हो ही, यह जरूरी नहीं है। यह एक सार्वभौम तथ्य है कि पुण्य बंध में नाम कर्म की नियमा (अनिवार्यता) है और नाम कर्म के उदय में पुण्य बंध की भजना (अनिवार्यता नहीं) है। चैदहवाँ गुणस्थान अयोगी है। बिना योग के कर्म बंध होता नहीं, इसलिए उसे अबंधक गुणस्थान माना है।

(क्रमश:)