वीर भिक्षु की जय हो
वीर भिक्षु की जय हो।
महाश्रमण गुरु आशीषों से जीवन ज्योतिर्मय हो।
साध्वी पावन प्रज्ञा जी का अनशन मंगलमय हो।।
इच्छाएँ सब पूर्ण हो गई इच्छा एक रही है।
मोक्ष महल को प्राप्त करूँ मैं इच्छा एक यही है।
महाश्रमण गुरुवर से उपकृत श्रद्धा प्रणत हृदय हो।।
मुख्यमुनिश्री फली भावना संयम पाया सुखकर।
पावन प्रज्ञा चारित्रात्मा अनशन भी क्षेमंकर।
पुलकित है अंतर आत्मा से सहज, प्रणव, अक्षय हो।।
साध्वीप्रमुखा साध्वीवर्या अनुकंपा करवाते।
साध्वीवृंद करे नित सेवा प्रमुदित सब हो जाते।
कृतज्ञता भावों से भाषित पावन प्रज्ञा लय हो।।
गुरु की करुणा इतनी करुणा वचनातीत कहाएँ।
गुरु-वत्सलता देख-देखकर जन-जन मन हर्षाएँ।
चले साधना रत्नत्रय की पावन भाग्योदय हो।।
जिन भावों से संयम धारा तप अनशन स्वीकारा।
बढ़ते-चढ़ते परिणामों से कटे कर्म की कारा।
समता की सूरत है पावन सघन निर्जरामय हो।।
लय: संयममय जीवन हो---