अनशन की महिमा भारी

अनशन की महिमा भारी

साध्वी पावनप्रज्ञा जी की समता विस्मयकारी।
अनशन की महिमा भारी।।

समणीश्रेणी से आकर आत्मसाधना लक्ष्य बनाया,
गुरुवर महाप्रज्ञ की शरण मिली सौभाग्य सवाया,
सहज स्वच्छता कार्यकुशलता लगती सबको प्यारी।।

तन की तीव्र वेदना पर मन को मजबूत बनाया,
नहीं कराऊँगी मैं बड़ी चिकित्सा शौर्य जगाया,
दृढ़-संकल्पशक्ति का उदाहरण जीवन अविकारी।।

भगिनिसुता है प्रणव और भगिनी अक्षयप्रज्ञा जी,
सहयोगी बनकर दोनों ने पल-पल सेवा साझी,
समणी से श्रमणी जीवन की यात्रा मंगलकारी।।

गुरु चरणों में किया समर्पण तन, मन जीवन सारा,
गुरुमुख से ली दीक्षा गुरुमुख से पचखा संथारा,
गुरुवर ने मांझी बन तट से नैया पार उतारी।।

सर्व मनोरथ पूर्ण किए इच्छापूरण गुरुवर ने,
उत्साही पावनप्रज्ञा उद्यत भवजलनिधि तरने,
कर्ममुक्त बन पायो सत्वर मोक्ष सदन अधिकारी।।

साध्वीप्रमुखाश्री की सन्निधि अनुकंपा आलय में,
हाथ जुड़े रहते हैं हरदम कृतज्ञता की लय में,
प्रमोदभाव से प्रसन्नता से महके मन फुलवारी।।

नश्वर है जग की माया नश्वर है रिश्ते नाते,
शूरवीर तन की ममता तज आत्मोन्मुख बन जाते,
आत्मशक्ति का हुआ जागरण दुविधाएँ सब हारी,
आत्मलीन पावनप्रज्ञा अब आत्मा से इकतारी।।

लय: जहाँ डाल-डाल पर---