पर्वाधिराज पर्युषण महापर्व आराधना

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पर्वाधिराज पर्युषण महापर्व आराधना

ब्यावर।
साध्वी शांताकुमारी जी ‘गंगाशहर’ के सान्निध्य में पर्वाधिराज पर्युषण महापर्व बड़े उत्साह से मनाया गया। चारित्रात्माओं के सान्निध्य में पर्युषण महापर्व की आराधना हेतु केंद्र के द्वारा निर्धारित नवाह्निक कार्यक्रम आयोजित किए गए। जिनमें प्रत्येक दिवस की महत्ता पर चारित्रात्माओं द्वारा मंगल उद्बोधन प्रदान किया गया। प्रातःकालीन प्रवचन एवं रात्रिकालीन कार्यक्रम में श्रावक समाज उत्साह से भाग लिया। अभातेयुप के तत्त्वावधान में आयोजित अभिनव सामायिक दिवस पर तेयुप के अथक प्रयास एवं साध्वी शांताकुमारी जी की प्रेरणा से 75 सामायिक हुई। पर्युषण महापर्व के दौरान अखंड जप, सायंकालीन सामुहिक प्रतिक्रमण का क्रम प्रतिदिन चला।
साध्वीश्री जी की प्रेरणा से यहाँ 58 पौषध हुए, जिनमें अष्ट प्रहरी 18 और प्रहरी 1 तथा चतुर्थ प्रहरी 40 हुए। इसी क्रम में उपवास की बारी एक, बेला 4, तेला 20, नौ 2, ग्यारह 1, पंद्रह 2, मासखमण 1, वर्षीतप 2, एकासन का मासखमण 4, एकांतर एक माह 1, एकासन की पचरंगी 2, दस प्रत्याख्यान की 10 लड़ी, सामायिक पचरंगी 2, रात्रिकालीन संवर 90 दिन, मौन तेला 1, उपवास अनेक आदि तपस्याएँ हुई।
संवत्सरी महापर्व के दिन व्याख्यान चला। जिसमें भगवान महावीर के पंच कल्याणकों का वर्णन, चंदनबाला का रोचक प्रकरण, निन्हवाद, गणधरवाद, प्रभावक, आचार्य, दस आश्चर्य, उपसर्ग एवं आचार्य परंपरा पर प्रकाश डाला। साध्वीश्री जी ने बताया कि पर्युषण महापर्व के समय संपूर्ण जैन समाज को अधिक से अधिक धर्म आराधना कर जीवन का कल्याण करना चाहिए।
क्षमापना दिवस पर स्थानकवासी संप्रदाय की साध्वी धैर्यप्रभा जी एवं तेरापंथ धर्मसंघ की साध्वी शांताकुमारी जी एवं सहवर्ती साध्वियों एवं दोनों श्रावक समाज का आध्यात्मिक एवं स्नेहपूर्ण मिलन चातुर्मास स्थल, मूथा भवन में हुआ। साध्वीश्री जी ने क्षमापना दिवस की महत्ता को बताते हुए कहा कि यह दिन न तो पौषध करने का है और न उपवास करने का है। यह दिन तो मन की गाँठों को खोलकर एक-दूसरे से क्षमायाचना करने का है। इस प्रकार साध्वीश्री जी ने संघ का वर्धापन किया।