विश्वसनीयता बढ़ाने में सच्चाई का बहुत बड़ा योगदान: आचार्यश्री महाश्रमण
एडवोकेट एवं डाॅक्टर्स काॅन्फ्रेंस का आयोजन
नंदनवन, 21 अक्टूबर, 2023
शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि जैन धर्म में अनेक शास्त्र हैं। उन शास्त्रों में एक आगम है-भगवती सूत्र। यह बहुत विशालकाय आगम है। 32 आगम हमारी परंपरा में प्रमाण रूप में सम्मत हैं। उनमें अनेक वर्गीकरण हैं। एक वर्गीकरण है-अंग आगमों का। 11 आगम अंग रूप में प्रतिष्ठित हैं। उन अंग आगमों में पाँचवाँ अंग भगवई विवागपण्णति है। भगवती जैसा सम्मानपूर्ण नाम इस आगम को प्राप्त है। इसमें विभिन्न विषय वर्णित किए गए हैं। यहाँ एक जगह बताया गया है-जीव निर्वृत्ति। हमारी इस दुनिया में दो ही तत्त्व होते हैं-जीव और अजीव। जीव है, वे अनंत काल से हैं। कभी जीव का प्रारंभ नहीं हुआ है। ये आत्मा अनेक गतियों में घूमती रहती है, जब तक मोक्ष न हो जाए जन्म परिवर्तन होता रहता है।
प्रश्न किया गया है कि जीव निर्वृत्ति कितने प्रकार की प्रज्ञप्त है। जीव निर्वृत्ति के पाँच प्रकार बताए गए हैं। वैसे जीवों को दो भागों में बाँटा गया है-सिद्ध और संसारी सिद्ध जीव जन्म-मरण की परंपरा से मुक्त होकर मोक्ष में विराजमान हो गए हैं। उनका जन्म-मरण नहीं है। वे परमात्म स्वरूप हैं। ऐसी अनंत आत्माएँ मोक्ष में स्थित हैं। वे सब निरंजन-निराकार हैं। उनके शरीर, वाणी, मन कुछ नहीं हैं। मनुष्य गति से ही जीव मोक्ष में जा सकता है और गति से नहीं जा सकते।
देव कभी सीधे मोक्ष में नहीं जा सकते। उनको भी मनुष्य बनकर साधना करनी होती है, तो वे मोक्ष में जा सकते हैं। संसारी जीव पाँच प्रकार के बताए हैं-एकेंद्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक। वनस्पति, वायु, अग्नि, पृथ्वी और पानी ये सब एकेन्द्रिय जीव हैं। वायुकाय जीव की हिंसा से बचने के लिए हम मुख पर मुखवस्त्रिका रखते हैं। लट-क्रीमी आदि दो इंद्रिय वाले जीव द्विन्द्रिय कहलाते हैं। कीड़े-मकोड़े आदि तीन इंद्रिय वाले जीव हैं। मक्खी-मच्छर आदि चार इंद्रिय वाले जीव हैं। मनुष्य-पशु-पक्षी, देव, नैरियक-ये सब पाँच इंद्रियों वाले जीव हैं। यह सारा जीव जगत है। अजीव जगत में भी अनेक चीजें हैं, जो हमारे काम आती हैं। उनमें कुछ तो अमूर्त है, हमें दिखाई भी नहीं देती हैं।
अमूर्त में एक तत्त्व है धर्मास्तिकाय है, जो पूरे लोक में व्याप्त है, जो हमें गति क्रिया में सहायता करता है। दूसरा है-अधर्मास्तिकाय उसका काम है, गति को रोकना, स्थिरता देना। जहाँ छः द्रव्य हैं-वह लोक है। लोक के अंदर ही हमारी सारी दुनिया है। अलोकाकाश में सिर्फ आकाश है और कुछ नहीं है। हम सब जीव हैं, हम सब जीवों के प्रति अहिंसा का भाव रखें। गृहस्थों के आवश्यक हिंसा हो सकती है। साधु तो पाँच महाव्रतधारी अहिंसक होते हैं। साधु को तो रात में न खाना खाना न पानी पीना। साधु तो सर्वथा अपरिग्रह होते हैं। साधुचर्या को विस्तार से समझाया। साध्वी उदितप्रभा जी ने पूज्यप्रवर से अठाई की तपस्या के प्रत्याख्यान लिए।
पूज्यप्रवर की सन्निधि में तेरापंथ प्रोफेश्नल फोर्म द्वारा एडवोकेट एवं डाॅक्टर्स की काॅन्फ्रेंस का आयोजन हुआ, इसके मुख्य अतिथि मुंबई हाईकोर्ट के जज के0आर0 श्रीराम थे। पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाया। राकेश बोहरा ने सभी का स्वागत किया। आज की थीम थी-सत्य नीति ही सफलता का मार्ग है। एम0एस फेडरल, जस्टिस के0आर0 श्रीराम ने अपनी भावना अभिव्यक्त की।
पूज्यप्रवर ने फरमाया कि सच्चाई तो परमात्म पद को प्राप्त कराने वाली होती है। सच्चाई परेशान हो सकती है, पर वह परास्त नहीं हो सकती। आत्मा तो अछेद्य है। अदाध्य है, न कोई उसे भिगो सकता है न कोई उसे सुखा सकता है। सच्चाई तो अध्यात्म का एक अंग है। व्यवहार में भी सच्चाई चलती है। विश्वसनीयता बढ़ाने में सच्चाई का बड़ा योगदान है। सभी सच्चाई से अच्छा काम करते रहें। टीपीएफ भी अच्छा कार्य करता रहा।