सच्चाई के साक्षात्कार के लिए विवेकपूर्वक बात को समझना आवश्यक : आचार्यश्री महाश्रमण
नंदनवन, 27 अक्टूबर, 2023
महामनीषी आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि भगवती सूत्र में भगवान महावीर से प्रश्न किया गया कि इस जम्बू द्वीप का यह भारत वर्ष है, इस अवसर्पिणी काल में देवानुप्रिय का तीर्थ कितने समय तक चलेगा? गौतम के नाम उत्तर दिया गया कि इस जम्बू द्वीप के भारत वर्ष में मेरा यह तीर्थ 21000 वर्ष तक रहेगा। यह एक भविष्यवाणी की सी बात है कि भगवान का शासन पंचम आरे की संपन्नता तक रहेगा। प्रश्न उठता है कि यह तीर्थ जो साधु-साध्वी, श्रावक व श्राविका के रूप में है, वह 21000 वर्ष तक रहेगी? आगम की बात करते हुए निष्पक्ष भाव होना चाहिए। किसी ग्रंथ का अर्थ या किसी द्वारा कही गई बात का अर्थ करते समय निष्पक्षता का भाव बहुत महत्त्वपूर्ण होता है।
जो आग्रही है, पूर्वाग्रही है, पहले से बंधा हुआ है, वो युक्ति को भी जैसे-तैसे अपनी जो मति है, वहाँ ले जाने का प्रयास करता है। जो व्यक्ति पक्षपात या आग्रह से रहीत है, उसकी जो युक्ति है, वो उसकी मति वहाँ जाती है जो युक्ति से संगत होती है। तटस्थ आदमी का मनरूपी बछड़ा युक्ति रूपी गाय के पीछे-पीछे चलता है। अध्येता वह अच्छा होता है, जो मध्यस्थ हो। सच्चाई का साक्षात्कार करना है, तो हमें वह मनरूपी बछड़ा बन युक्ति रूपी गाय के पीछे-पीछे चलेंगे तो हम अच्छा अध्येता बन सकेंगे। न्यायाधीश वही बढ़िया है, जो न मेरा है, न तेरा है, न्याय ही मेरा है। विवेकपूर्वक सही बात को समझने का प्रयास करें। किस संदर्भ में क्या बात कही गई है, उसको समझने का प्रयास करें। प्रतिपाद्य क्या है?
आज श्रीमद् जयाचार्य का जन्म दिवस है। वि0सं0 1860 आश्विन शुक्ला चतुर्दशी को उनका जन्म हुआ था। आचार्य भिक्षु से उनका कुछ साम्य भी प्रतीत हो रहा है। दोनों महापुरुष वि0सं0 1860 से जुड़े हैं। एक महाप्रयाण की दृष्टि से और दूसरे जन्म की दृष्टि से। दोनों ही कांठा-मारवाड़ से थे। दोनों का वर्ण श्याम था, दोनों की उम्र भी प्रायः समान थी। दोनों जीवन के 78वें वर्ष में महाप्रयाण को प्राप्त हुए थे। दोनों ही आचार्यश्री जैन आगमों के विद्वान थे। दोनों राजस्थानी भाषा के साहित्यकार थे। दोनों ने रागणियों में भी रचनाएँ की थीं। आचार्य भिक्षु तो हमारे आद्यप्रवर्तक थे ही पर जयाचार्य भी तेरापंथ में एक नया उन्मेष लाने वाले, नया वेग देने वाले, नया प्रस्थान कराने वाले कुछ अंशों में थे। तेरापंथ को नया संस्करण देने वाले श्रीमद् जयाचार्य थे। संघ में नवीनता को रूप दिया।
पूज्य जयाचार्य एक तत्त्ववेत्ताµज्ञानमूर्ति के रूप में थे। अध्यात्म जगत के वे विशेष पुरुष थे। अंत समय में जीवन को साधना में लगाया था, वे एक अध्यात्म योगी, विधि व्यवस्थापक पुरुष थे। वि0सं0 1938 में भाद्रव कृष्णा-12 को उनका जयपुर में महाप्रयाण हुआ था। भगवान का प्रवचन या संघ भी तीर्थ कहलाता है। जैन शासन 21 हजार वर्ष तक रहेगा। हम जैन शासन तेरापंथ धर्मसंघ से जुड़े हैं। हमारा यह भैक्षव शासन है। अतीत में 10 आचार्य हुए हैं। श्रीमद् जयाचार्य तेरापंथ महाग्रंथ को दूसरे संस्करण निकालने वाले आचार्य के रूप में देख रहा हूँ।
गुरुदेव तुलसी और आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी को तो हमने देखा है। गुरुदेव तुलसी के वाचना प्रमुखत्व में आगम संपादन का कार्य शुरू हुआ था। आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी मुख्य संपादक थे। जोड़ रचना के संदर्भ में आगम संपादन करने वाले श्रीमद् जयाचार्य थे। अनेक साधु-साध्वियाँ आगम संपादन से जुड़े हैं। आगम-संपादन का कार्य शीघ्र संपन्न हो ऐसा प्रयास करें। मैं आगम पर्यवेक्षक के रूप में हूँ, इसलिए स्मरणा करा रहा हूँ।
आज चतुर्दशी हाजरी का दिन है। कल शारदीय पूर्णिमा है। पूज्यप्रवर ने हाजरी का वाचन कराते हुए प्रेरणाएँ प्रदान करवाई। लेख पत्र का वाचन मुनि देवकुमार जी, मुनि विपुलकुमार जी, मुनि मेधावीकुमार जी एवं मुनि अनुशासन कुमार जी ने किया। समूह में लेखपत्र का वाचन हुआ। आगे दीपावली आ रही है, दीपावली पर पटाखों से किसी की हिंसा या किसी का नुकसान न हो इस बात की सावधानी रहे। थाणे के विधायक संजीव नायक पूज्यप्रवर की सन्निधि में पहुँचे। उन्होंने अपने काॅलेज में दीक्षा महोत्सव करवाने की पूज्यप्रवर से अर्ज की। साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी ने कहा कि हम अपने आंतरिक व्यवहार को देखें। हम अपने आपको देखने के लिए अपना आत्म-निरीक्षण करें। आत्म-निरीक्षण करने वाला चिंतन करे कि मैंने क्या किया, क्या नहीं किया। क्या करना शेष रह गया है। कौन सा ऐसा कार्य था जो मैं कर सकता था पर नहीं किया। हम स्वयं की आत्मा को जानें। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।